चौहान जाट का इतिहास
जाट जागरण। चौहान एक जाट गोत्र के रूप में भी पाया जाता है। इस जाट गोत्र के लोग दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में मिलते है जबकि कुछ लोग पाकिस्तान में मिलते है लेकिन वहां उन्होंने मुस्लिम धर्म को अपना लिया है। आपको बता दें कि चौहान गोत्र जाटों के अलावा राजपूत, गुर्जर जातियों में भी मिलता है जिसके कारण कई बार इनमें गलतफहमी पैदा हो जाती है। इस गोत्र के लोगों को कहीं चुहान नाम से पुकारा जाता है तो कहीं छुहान, चवान, बड़ चौहान के नाम से भी पुकारा जाता है लेकिन ये सभी नाम चौहान जाट गोत्र के है। यह गोत्र मुख्य रूप से अग्निकुल से संबंध रखता है। इन्होंने नागवंश क्षत्रिय के रूप में अपनी पहचान बनाई है। माउंट आबू में ये लोग निवास करते थे एवं इनके ऋषि अत्रेय को माना जाता है।
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चौहान जाटों के इतिहास के बारे में जब जानकारी हासिल की गई तो पता चला कि हर्ष के साम्राज्य के टूट जाने के बाद उत्तरी भारत में बहुत सी छोटी-बड़ी रियासते पैदा हो गई थी। उन्हीं में से एक रियासत थी पृथ्वीराज चौहान की। उन्होंने अपनी राजधानी दिल्ली को बनाया था। जानकारी के अनुसार जोगमाया के मंदिर का निर्माण भी इन्हीं चौहान नरेश ने कराया था। चौहानों से पहले दिल्ली पर तोमरों का राज्य था लेकिन तोमरों को युद्ध में हराने के पश्चात इस पर चौहानों ने कब्जा कर लिया।
इनका वजूद ईसी की दसवीं शताब्दी के आस पास मिलता है। उस समय प्रतिहारों के कमजोर पडऩे के बाद चौहान शाखा शक्तिशाली होकर उभरी। नागौर तथा सांभर में चौहानों ने कब्जा कर लिया और यही स्थान चौहानों के प्रमुख स्थान के रूप में जाने गए। चौहान काफी शक्तिशाली थे जिसके कारण उन्होंने लगभग 200 वर्षों तक अरबों, तुर्कों, गौरी, गजनवी जैसी विदेशी शक्तियों का सामना किया और उन्हें भारत में घूसने से रोका। चुरू क्षेत्र में चौहानों की ददरेवा शाखा के शासक जीवराम चौहान के पुत्र गोगा ने नवीं सदी के अंत में महमूद गजनवी की फौजों के छक्के छुड़ा दिये थे। गोगा का युद्ध कौशल देखकर महमूद गजनवी के मुंह से सहसा निकल पड़ा कि यह तो जाहरपीर (अचानक गायब और प्रकट होने वाला) है। महमूद गजनवी को हार का मुंह देखना पड़ा और उसको अपने देश वापस भाग जाना पड़ा। लेकिन यह दुर्भाग्य रहा कि उस युद्ध में गोगा को बलिदान होना पड़ा। आज भी गोगाजी का बलिदान दिवस बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। भाद्रपद कृष्ण पक्ष को गोगा नवमी को घर घर में मनाते है और कई जगह गांव देहात में तो इस अवसर पर मेले भरते है।
चौथी पाँचवीं शताब्दी के आस-पास अनंत गौचर (उत्तर पश्चिम राजस्थान, पंजाब, कश्मीर तक) में प्राचीन नागवंशी क्षत्रिय अनंतनाग नाम के शासक का राज्य हुआ करता था। इसी नागवंशी के वंशज चौहान कहलाए। अहिछत्रपुर (नागौर) इनकी राजधानी थी। आज जहां नागौर का किला है वहाँ इन्हीं नागों द्वारा सर्वप्रथम चौथी सदी में धूलकोट के रूप में दुर्ग का निर्माण किया गया था। इस दुर्ग का नाम रखा नागदुर्ग। नागदुर्ग ही बाद में अपभ्रंश होकर नागौर कहलाया।
जानकारी के अनुसार 551 ई. के आस-पास वासुदेव नाग यहाँ पर शासन करता था। यह नागवंशी शासक मूलत: शिव भक्त थे। आठवीं शताब्दी में ये चौहान कहलाए। नरदेव के बाद विग्रहराज द्वितीय ने 997 ई. में मुस्लिम आक्रमण कारी सुबुक्तगीन को धूल चटाई। बाद में दुर्लभराज तृतीय उसके बाद विग्रहराज तृतीय तथा बाद में पृथ्वीराज प्रथम हुये। इन्हीं शासकों को चौहान जत्थे का नेतृत्व मिला। इस समय ये प्रतिहरों के सहायक थे। 738 ई. में इन्होंने प्रतिहारों के साथ मिलकर राजस्थान की लड़ाई लड़ी थी।
नागदुर्ग के पुन: नव-निर्माण का श्री गणेश गोविन्दराज या गोविन्ददेव तृतीय के समय (1053 ई.) अक्षय तृतीय को किया गया। गोविंद देव तृतीय के समय अरबों-तुर्कों द्वारा दखल देने के कारण चौहनों ने अपनी राजधानी अहिछत्रपुर से हटकर शाकंभरी (सांभर) को बनाया। बाद में और भी अधिक सुरक्षित स्थान अजमेर को अजमेर (अजयपाल) ने 1123 ई. में अपनी राजधानी बनाया। यह नगर नाग पहाड़ की पहाडिय़ों के बीच बसाया था। एक काफी ऊंची पहाड़ी पर अजमेर दुर्ग का निर्माण करवाया था। अब यह दुर्ग तारागढ के नाम से प्रसिद्ध है।
विग्रहराज चतुर्थ (बिसलदेव) (1153-1164 ई) इस वंश का अत्यंत पराक्रमी शासक हुआ। दिल्ली के लौह स्तम्भ पर लेख है कि उन्होने म्लेच्छों को भगाकर भारत भूमि को पुन: आर्यभूमि बनाया था। बीसलदेव ने बीसलपुर झील और सरस्वती कथंभरण संस्कृत पाठशाला का निर्माण करवाया जिसे बाद में मुस्लिम शासकों ने तोड़कर ढाई दिन का झौंपड़ा बना दिया। इनके स्तंभों पर आज भी संस्कृत श्लोक उत्कीर्ण हैं। जगदेव, पृथ्वीराज द्वितीय, सोमेश्वर चौहानों के अगले शासक हुये। सोमेश्वर का पुत्र पृथ्वीराज तृतीय (1176-1192 ई) ही पृथ्वीराज चौहान के नाम से विख्यात हुआ। यह अजमेर के साथ दिल्ली का भी शासक बना।
चौहान खाप के उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में पांच गांव है। जिसमें रमाला, किर्थल, लुम्बा, तुगाना और आसरा का नाम लिया जाता है जबकि इन गावों के प्रधान गांव के रूप में रमाला गांव को जाना जाता है।
अगर हम इन चौहान जाटों के गांवों की बात करें तो पता चलता है कि पंजाब के होशियारपुर में बुधी पिंड, नंगल खुंगा, गढ़ी रंबा, गहोट, हरसी पिंड, लोधी चक, धुग्गा कलां, चट्टोवाल, झाजी पिंड, उर्मर टांडा, झावन, नगला बिहला, हाजीपुर के नाम लिए जाते है जबकि जालंधर गांव में बटाला, पोहरी, जसप्लोन, सरहल मंडी, पटियाला में माणकपुर, राजपुरा, गुरदितपुर, जस्सो मजरा के नाम लिये जा सकते है। संगरूर जिले में बलरान, देहला, गुलेरी, मूनक गांव का नाम आता है। अमृतसर जिले में मटेवाल, खानकोट का नाम लिया जाता है। जबकि बरनाल जिले में चौहान की कलां गांव का नाम लिया जाता है। भिवानी जिले में खुंगा चौहानों गांव का नाम आता है। जींद में गांव जलालपुर कलां, पोनकर खीरी, राजना खुर्द
हिसार जिले के गांव
जुगलान, खरकरी
पलवल जिले के गांव
नौहवार चौहान, अटोहन, औरंगाबाद, छज्जनगर, जटोली होडल, खेड़ी कलां, मितरौल, भिदुकी का नाम आता है।
रोहतक जिले में बालंद, मोर खेड़ी
सोनीपत जिले में बड़वासनी, करनाल जिले में नीलोखेड़ी
राजस्थान राज्य के गांव
जयपुर में एयरपोर्ट कॉलोनी, बजरंग विहार, सेठी कॉलोनी,
चूरू जिले में ददरेवा, राजगढ़ चूरू , गंगानगर जिले का सूरतगढ़ गांव
अब अगर हम उत्तर प्रदेश में चौहान जाटों के निवास की बात करें तो पता चलता है कि नोहर चौहान खाप के आगरा जिले में 8 गांव है और मथुरा जिले में 124 गांव व गाजियाबाद जिले में 2 गांव धीरेन्द्र और शेरपुरा का नाम लिया जाता है।
मुजफ्फरनगर जिले के गाँव
अथाई, बछौर, बनत, गोहरानी,
गाजियाबाद जिले में भड़स्यान गाँव
सहारनपुर जिले में टिकरोल गाँव
बिजनौर जिले में रायपुर लकड़ा गाँव
अमरोहा जिले में टांडा अमरपुर गाँव
शामली जिले में नौनागली गाँव
बुलंदशहर जिले में शाहपुर कला गाँव
पाकिस्तान में वितरण
1911 की जनसंख्या गणना के अनुसार लाहौर जिले में 393 चौहान मुस्लिम जाट परिवार थे लाहौर जिला – चौहान (393)
मोंटगोमरी में – चौहान (517)
गुजरात जिला – चौहान 726,
लायलपुर जिला – चौहान (629)
मुल्तान जिला – चव्हाण (775),
डेरा गाजी खान जिला – चौहान (1,026)
बहावलपुर राज्य – चौहान (567)
उल्लेखनीय व्यक्ति
संदीप सिंह (चौहान) – आईपीएस, 2004 बैच
बदन सिंह चौहान (कुंडू) – सेवानिवृत्त महाप्रबंधक, पर्यटन विकास निगम, मध्य प्रदेश।
नफेसिंह चौहान – 1997 में दिल्ली पुलिस में सब-इंस्पेक्टर बने।
बीरेंद्र सिंह चौहान- दिल्ली पुलिस में इंस्पेक्टर
विनय कुमार चौहान – सेवानिवृत्त। एजीएम एनएससी कृषि,
बाबू राम चौहान – एरिया मैनेजर एनएफएल,
भागीरथ चौहान – सरकारी अधिकारी। इन्होंने 2014 में 770 रैंक हासिल कर यूपीएससी क्लियर की।