जांगू भी एक जाट गोत्र के रूप में जाना जाता है। इसे झांगू, जांघू आदि नामों से भी जाना जाता है। राजस्थान, मध्यप्रदेश और दिल्ली के अलावा हरियाणा में भी इस गोत्र के लोग काफी संख्या में मिलते है। ये लोग अक्सर राजस्थानी और हिन्दी भाषा का प्रयोग करते है।जांगू जाटों का इतिहास बडा ही रोचक है। इतिहास के पन्नों को पलटने पर हमें एक कहानी का पता चला जिससे जांगू जाटों के गांवों की उत्पत्ति के बारे में जानकारी मिलती है। कहानी इस प्रकार से है कि 1100 ई. के लगभग ग्यासुद्दीन तुगलक दिल्ली का बादशाह हुआ करता था।
उस समय गांवों से कर वसूल कर ही राजकाज कार्य किए जाते थे। समय समय पर अधिकारी गांवों में जाकर कर वसूलने का कार्य करते थे। राजा ने अपने सैनिकों को राजस्थान के सीकर जिले में कर उगाही के लिए सैनिक और हाकिम को भेजा। लेकिन जब वे वापिस कर उगाही कर जाने लगे तो उन्होंने रास्ते में से एक बेहद खुबसूरत लडकी को उठा लिया। रास्ते में नारनौल के पास जिला झुंझुनूं के तत्कालीन रियासत खेतड़ी में धोलाखेड़ा नाम का एक बड़ा गांव जांगू गोत्र के जाटों का था। सुबह पांच बजे धोलाखेड़ा गांव के पास से गुजरे तो उस लड़की ने गांव के आदमियों की आवाज सुनकर रोना शुरू कर दिया। लड़की के रोने की आवाज सुन कर गांव वाले दौड़ कर आये । उन्होंने लडकी से रोने की वजह जानना चाहा तो लडकि ने बताया कि हाकिम उसे एक गांव से जबरदस्ती उठाकर लाया है और अपने साथ लेकर जा रहा है। यह सूनकर गांव वालों ने हाकिम की सेना पर हमला कर दिया। कुछ सैनिकों को मार दिया व कुछ सैनिक भाग गये और लड़की को वहीं छुड़वा लिया लेकिन हाकिम बच निकला। लड़की का गांव पूछ कर उसके घर भिजवा दी । इस मुठभेड़ का बदला लेने के लिये हाकिम ने योजना बनानी शुरू कर दी। उसके गुप्तचरों ने बताया कि गांव पर हमला करने के लिए फलेरा दूज सही दिन होगा चूंकि उस दिन गांव से बावन (52) बारात शादी के लिए जानी थी। उस समय बारात तीन दिन तक रूकती थी। योजनानुसार फलेरा दूज की रात को धोलाखेड़ा गांव पर हमला बोला। आदमी बारातों में गये हुए थे अत: औरतें लड़ी। गांव में आग लगा दी और बारात जैसे जैसे आती गई बारातियों को खत्म करते रहे व पूरे गांव को तबाह कर दिया। जो कुछ बचे वे धोलाखेड़ा उजडऩे के बाद दिल्ली की तरफ पलायन कर गये। उस समय के बसे गुडग़ावां व दिल्ली के आसपास जांगू गोत्र के जाटों के 12 बड़े गांव आज भी हैं उनमें एक दौलताबाद भी है। धोलाखेड़ा उजड़ा उस समय एक लड़की अपने पीहर चांदगोठी गई हुई थी एवं गर्भवती थी। उसने अपने पीहर में पुत्र को जन्म दिया और उसका नाम भाल रखा। लड़का बड़ा शरारती था। लड़के की शरारत को उसके मामा मामी बरदास्त नहीं कर सके और उन्होंने कहा कि हमारी छाती क्यों फूंकते हो अपने घर जाओ। लड़की के पिता ने अपनी लड़की को जीवनबसर करने के लिये भाईयों से अलग जमीन दे दी। लड़की उस जमीन पर अपने पुत्र भाल के साथ खेत में रहने लगी। भाल खेत की रखवाली करता था। वह खेत में डामचे पर चढ़कर गोफीये से गोले फेंक कर जानवर, पक्षी उड़ाता था। खेत के पास में एक बहुत बड़ी बणी (जोहड़) थी। एकबार ग्यासुद्दीन दिल्ली का बादशाह उस बणी में आ पहुंचा, उसके साथी उससे बिछुड़ गये थे। वह बणी में जब घोड़े पर चढ़कर आया तो उसकी आवाज भाल के कानों में पड़ी। भाल ने सोचा की कोई जानवर है अत: उसको भगाने के लिये गोफीये से गोला मारा जो घोड़े की टांग पर लगा जिससे घोड़े की टांग टूट गई। बादशाह चिल्लाया तो उसकी आवाज सुनकर भाल वहां देखने गया कि कौन है। भाल उसको खेत पर ले आया और उसको ककड़ी मतीरे खिलाये। बातों बातों में भाल ने अपने बारे में जानकारी दी और बादशाह ने जब उसे अपने बारे में सच्चाई बताई तो भाल को क्रोध आ गया। भाल ने निश्चय कर लिया कि वह बादशाह को मार कर अपने गांव उजाडने का बदला लेगा। लेकिन जब वह बादशाह को मारने के लिए आगे बढा तो बादशाह ने जानना चाहा कि वह उसे क्यों मारना चाहता है तो भाल ने बादशाह को सारी सच्चाई बता दी। जिसके बाद बादशाह ने पश्चाताप करते हुए कहा कि वह उसे न मारे हाकिम के द्वारा किए गए गुनाह कि बादहशा को काई जानकारी नहीं थी। लेकिन इस संबंध में अब कुछ नहीं किया जा सकता लेकिन बादशाह ने भाल के सामने एक पेशकश रखी कि भाल उसके साथ धोलखेडा चले ताकि वह वहां एक बार फिर से गांव को आबाद कर सकें। भाल इसके लिए तैयार हो गया। भाल बादशाह के साथ उजड़े हुए धोलाखेड़ा आ गया, वहां बादशाह ने भाल को 52000 बीघा जमीन दी एवं वहां धोलाखेड़ा के पास में भाल ने भालोठ गांव बसाया जो आज भी नारनौल के पास जिला झुंझुनूं, तहसील बुहाना, राजस्थान में आबाद है। उसके बाद बादशाह ग्यासुद्दीन दिल्ली चला गया । धोलाखेड़ा से तीन भाई दौलत, बख्तावर और एक तीसरा भाई दिल्ली की तरफ जा कर बस गये। उनके नाम से आज भी गुडगाँव के पास दौलताबाद,
बख्तावरपुर (दिल्ली के पास) आदि जांगू गोत्र के तीन बड़े गाँव अब भी आबाद हैं।राजस्थान में वितरण
बाड़मेर जिले में मेवा नगर,
जयपुर जिले में भोजपुरा कलां (100), चंदलाई , दयालपुरा दूदू (1), रीता दूदू (2), रेती, तितरिया, यारलिपुरा,
जयपुर शहर में सांगानेर, टोंक रोड,
सीकर जिले में बहूजी की ढाणी, गोकुलपुरा, जांगू की ढाणी, खंडेला, मोरडोंगा।
अलवर जिले में धिस, कंतवारी,
भरतपुर जिले में डीग,
चूरू जिले में लालगढ़,
झुंझुनू जिले में भालोठ, धानी भालौठ, खेतड़ी, कुहाड़वास, नालपुर, श्यामपुरा बुहाना, मनरा बुहाना,
जालोर जिले में
जोधपुर जिले में जजीवाल खिचियान, जांगोवो की ढाणी, जांगुवास, लूना, मंडोर, पल्ली, पलरी मांगलिया, थडिय़ा, पूनासर,
नागौर जिले में अजडोली, दसना कलां, ढाकी की ढाणी, ढोजक, गन्साली, कुटियासनी खुर्द, रत्रि, रधनु, सरुंडा,
टोंक जिले में अरण्य कंकड़ (1), रामनिवासपुरा (2), सरोली,
हनुमानगढ़ जिले में बशीर, भकरनवाली, छप्पनवाली, हनुमानगढ़, खरक (1), पक्का सहारण, संगरिया। हरदयालपुरा, पीलीबंगा,
गंगानगर जिले के गाँव
बिंजेबला, पक्का सहारन,
बीकानेर जिले के गाँव
जेसन, कुंतसार (60),
हरियाणा में वितरण
सिरसा जिले में गाँव
महेंद्रगढ़ जिले में
धानी भालोथिया, गदरवास , खरोरा ,
रेवाड़ी जिले में
ढकिया, लाला, मालाहेरा, रोहारी,
फरीदाबाद जिले में
दुर्गापुर,
गुडग़ांव जिले में
दौलताबाद,
भिवानी जिले में
बिलावल, कारी तोखा, कासनी, मौर्य,
झज्जर जिले में
खोरा ,
मध्य प्रदेश में वितरण
मंदसौर जिले में बेटिकेरी, खंडेरिया कछार, लादूना (सीतामऊ), बेटिकेरी, रलायता (हैद्रा माता)।
रतलाम जिले के गाँव
ढेकावा (2), कंसर (1),
उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में धर्मपुर बिहारीपुर,
पंजाब के फिरोजपुर जिले में राजपुरा अबोहर,
दिल्ली में बख्तावर पुर, नियर लोनी बॉर्डर।
उल्लेखनीय व्यक्ति
महाशय धर्मपाल सिंह भालोथिया
कर्नल वीरेन्द्र सिंह –
सुरेन्द्र सिंह –
डॉ राज पाल सिंह जांगू – शिक्षाविद, इतिहासकार और प्रसिद्ध लेखक
रामू राम जांगू -सामाजिक कार्यकर्ता
कैप्टन रणधीर सिंह
महावीर सिंह जांगू – एडवोकेट
नादान सिंह जांगू –
अजीत सिंह जांगू –
भूप सिंह जांगू –
श्री नारायण राम जांगू – शाखा प्रबंधक, एस.बी.आई,
राकेश जांगू –