जाट खिसकते ही प्रदेश में शून्य हो सकती है कांग्रेस पार्टी।
बेनिवाल के बढ़ते वजूद से घबराकर 2018 के चुनाव में कांग्रेस एवं भाजपा दोनों ने ही जाटों को बड़ी संख्या में टिकट दिए क्योंकि उन्हें लग रहा था कि जाटों के जरिये ही सत्ता हासिल की जा सकती है। ऐसी स्तिथि में जाटों के वोटों का बिखराव कांग्रेस, भाजपा एवं रालोपा तीनों तरफ हुआ। कांग्रेस बड़ी मुश्किल से बहुमत हासिल कर पाई, एव भाजपा भी मजबूत विपक्ष के रूप में है। वंही जाट बाहूल्य सीटो पर रालोपा ने तीन सीट जीतकर नया विकल्प खड़ा करते हुए अच्छे मत प्राप्त किये। अब मुख्य बात यह है कि संघ यह पूरी तरह जान चूका है कि प्रदेश में कांग्रेस को कमजोर करने का एक ही तरीका है, जाट समाज को येन केन कांग्रेस से दूर किया जाए, ताकि कांग्रेस का मूल वोट बैंक खत्म हो सके। क्योंकि जब भी जाट कांग्रेस से नाराज हुए है तो भाजपा को सत्ता प्राप्ति हुई है। आज भी हालत यह है कि भरतपुर से लेकर बाड़मेर तक बिना जाटों के कांग्रेस एक बड़ी रैली करने की स्तिथि में नही है। हाल ही में भाजपा ने प्रदेश की स्तिथि को भांपते हुए कदावर नेताओ को पछाड़कर जाट जाति से आने वाले श्री सतीश पूनियां को प्रदेशाध्यक्ष बनाया, जिससे भी कौम का झुकाव भाजपा की तरफ बढ़ रहा है। ऐसे में खबर यह भी चली की हरीश चौधरी को उपमुख्यमंत्री बनाया जा सकता है, ताकि जाट पार्टी के साथ रह सके। अब दो सीटों पर उपचुनाव होने जा रहे है, चारो टिकट जाटों को दिए गये है। इसी बीच RCA घमसान से डूडी की वजह से भी बीकानेर सम्भाग सहित जाट कांग्रेस से नाराज नजर आ रहे है। इन परिस्थितियों के मध्यनजर, उपचुनाव के परिणाम भी लगभग कांग्रेस के खिलाफ जाते लग रहे है। ओवर ऑल देखा जाए तो पिछले 20 वर्षो से जाट समाज की एक ही मांग है जाट मुख्यमंत्री। लेकिन अब इस समाज को यह मांग कांग्रेस में निकट भविष्य में पूरी होती नजर आ नही रही है, क्योंकि पायलट पहले से ही waiting list में मौजूद है।
दूसरी तरफ हनुमान बेनीवाल का कद दिनोदिन बढ़ता जा रहा है एवं उन्होंने दोनों पार्टियों से हटकर समाज के सामने एक विकल्प दिया है, हालांकि इस विकल्प को जाट समाज कितना स्वीकार करेगा यह भविष्य के गर्भ में है लेकिन युवाओं का झुकाव बड़े जोर पर है। ऐसी स्तिथि में, देखना यह है कि जाट समाज अगर कांग्रेस से दूरी बनाते है तो क्या जाटों का झुकाव फिर से भाजपा की तरफ होगा या समाज रालोपा के जरिये गठबंधन या जैसे तैसे मुख्यमंत्री की कुर्सी प्राप्त करने का प्रयास करेगा। कांग्रेस के इतने बड़े मूल वोट बैंक को पार्टी से दूर करने के लिए अगर आने वाले 2023 के चुनाव में भाजपा किसी जाट को चेहरा बनाकर चुनाव लड़े तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी। हालांकि, बेनीवाल शुरू से ही जाट मुख्यमंत्री के नाम पर बिना शर्त समर्थन की बात करते आ रहे है। कांग्रेस ने समय रहते स्तिथि को नही भांपा एवं आपसी घमासान में लगी रही तो इतने बड़े परम्परागत मूल वोट बैंक को खो सकती है। अभी तक तो कांग्रेस के पास समय है कि इस मूल वोट बैंक को पार्टी से जोड़े रखा जा सकता है। बहरहाल अब देखना होगा कि दशकों से कायम सियासी शून्य को खत्म करने के लिए जाट सियासत का ऊंट किस करवट बैठता है।
अब कांग्रेस आई या गई….???
गहलोत को खुले मंच से चुनौती.
मिट गया कांग्रेस का ईमान।
गहलोत जादूगर नहीं, पूरा बेईमान।।
धृतराष्ट्र का पुत्रमोह दुर्योधन को ले बैठा।
जादूगर का पुत्रमोह कांग्रेस को ले डूबा।।
रामेश्वर डूडी है किसान समाज का स्वाभिमान।
चिंता नहीं, हक के लिए खड़ा है कलयुग का हनुमान।।
पुत्रमोह में धृतराष्ट्र (गहलोत) तेरी मति मारी गई।
अब अनुमान लगा ले, कांग्रेस आई या गई।।
कुलदीप झझरिया की फेसबुक वाल से