नई दिल्ली। हरियाणा एक ऐसा राज्य जहां राजनीतिक गलियारों की दशा ओर दिशा दोनों जाट फैक्टर से तय होती थी। जी हां होती थी। हरियाणा जाट बाहुल्य क्षेत्र तो है लेकिन समय के साथ यहां जाटों का दबदबा कम हुआ है। अगर हम पिछली सरकारों के दौरान हरियाणा राजनीति पर दृष्टि डाले तो पाएंगे कि हरियाणा में मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री, विधायकों की अच्छी खासी संख्या होती थी लेकिन अब जाट नेताओं की संख्या लगातार घट रही है। 2014 के चुनाव में भाजपा ने जीत हासिल कर हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री बनाकर सबको चौका दिया। जबकि 2014 में हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 27 जाट उम्मीदवारों पर दांव खेला था। लेकिन समय के साथ यह भरोसा कम हुआ है जिसका कारण है कि इस बार 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में केवल 17 उम्मीदवारों पर दांव खेला है। जबकि हरियाणा में इस बार जाट समाज बीजेपी के विरुद्ध जाने की तैयारी कर रहा है। अगर राजनीतिक रूप से देखे तो बीजेपी को हर संभव प्रयास करना चाहिए था कि वह जाट समाज को अपने पक्ष में लाने के लिए कदम उठाए। उसके लिए ज्यादा से ज्यादा जाटों को टिकट देने चाहिए थे लेकिन धरातल पर शायद बीजेपी किसी ओर ही पैतरे के पक्ष में हैं। जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहें है वैसे वैसे जाट समाज की बीजेपी विरोधी आवाज मुखर हो रही है। इस पर जाट नेताओं को टिकट ना देने पर उनके बगावती सूरों शायद बीजेपी की मुश्किले ओर बढा दे लेकिन यह तो समय ही बताएगा कि बीजेपी का जाटों पर भरोसा ना करना कितना सही निर्णय होगा। हरियाणा सरकार द्वारा टिकटों के बटवारे से निराश हुए कई उम्मीदवारों की नाराजग़ी और बग़ावत का सामना केन्द्रीय सरकार को करना पड़ सकता है। सूत्रों के मुताबिक लगभग 20 मंत्री और विधायक वल्लभगढ, होडल, फरीदाबाद, हथीन, पृथला, गुरुग्राम, पाटोदी और दादरी जैसी सीटों से अपना टिकट कटने से नाराज़ है। और पार्टी के खिलाफ बगावत का रुख अपना सकते है। कुछ प्रमुख सीटों पर चुनावी टिकटों के बटवारें में पार्टी में आपसी सहमति नहीं बन पा रही है। खबर है कि पलवल विधानसभा सीट से सीएम मनोहर लाल खट्टर अपने करीबी और पसंदीदा राजनैतिक सचिव दीपक मंगला को टिकट दिलाना चाहते है। तो वहीँ पार्टी प्रभारी अनिल जैन अपने करीबी गौरव गौतम को चुनावी टिकट दिलाने पर अड़े हुए है। इसी तरह नारायणगढ़,गन्नौर और महम जैसी सीटों पर भी टिकटों के बटवारें पर पार्टी में आपसी सहमति ना बन पाने पर पेंच फसें हुए है।
अगर सूत्रों की माने तो चुनाव में बीजेपी जाट वर्सिस ३६ कौम को भूनाने की कोशिश कर रही है ताकि वह जाट लैंड के क्षेत्र में बिना जाटों के अपनी जीत सुनिश्चित कर सकें लेकिन अगर ऐसा होता है तो यह हरियाणा में जाट समाज के राजनीतिक दिशा में ताबूत में आखिरी किल ठोकने जैसा होगा। हरियाणा में जाट फैक्टर एक बहुत बडा फैक्टर है ओर पिछले काफी समय से सत्ता के गलियारों में राजनीतिक निर्णय का केन्द्र जाट ही रहें है। जाट आंदोलन के दौरान पूरे समाज के ताकत लगाने के बावजूद जाट नौजवानों को सजा होना जाटों की अनदेखी का एक सबूत है। जो जाटों की घटती ताकत को दिखाता हैं। अब देखना यह है जाटों पर कम होते भरोसे का बीजेपी की राजनीति में क्या परिणाम निलकता हैं।