-
जाटों के रुख से सहारनपुर मंडल की सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, कैराना, मेरठ मंडल की मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, बुलंदशहर, मुरादाबाद मंडल की बिजनौर, मुरादाबाद, संभल, अमरोहा, नगीना, अलीगढ़ मंडल की हाथरस, अलीगढ़, फतेहपुर सीकरी, मथुरा सीटों का रुख तय होता है।
मेरठ। शुगर बाउल, किसान बेल्ट, जाट लैंड, जाट-मुस्लिम एकता की प्रयोगशाला, ना जाने कितने नामों के पहचान रखने वाले वेस्ट यूपी में हर किसी की नजर चुनाव में जाट समाज के रुख पर रहती है। कहावत है कि ‘जिसका जाट उसके ठाठ। इसकी एक वजह यह भी है कि चौधराहट करने वाले जाट समाज के पीछे अन्य जातियों का रुझान भी यहां तय होता रहा है। कभी पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के नाम पर एकजुट रहने वाला जाट समाज 2014 में पूरी तरह से मोदी लहर में बह गया था। नजीता वेस्ट यूपी में हर लोकसभा सीट पर कमल खिला। हालात ऐसे गए थे कि जाट समाज के बल पर सियासत करने वाले आरएलडी के अध्यक्ष अजित सिंह और जयंत चौधरी के साथ किसान नेता महेंद्र सिंह टिकेत के बेटे राकेश टिकैत भी मोदी की सुनामी में बह गए थे। वेस्ट में जाट का वजूद वेस्ट यूपी में जाट समाज की आबादी करीब 17 फीसदी हैं। वेस्ट में दलित, मुस्लिम के बाद तीसरे नंबर पर जाट हैं। जाटों के रुख से सहारनपुर मंडल की तीन सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, कैराना, मेरठ मंडल की पांच मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, बुलंदशहर, मुरादाबाद मंडल की बिजनौर, मुरादाबाद, संभल, अमरोहा, नगीना, अलीगढ़ मंडल की हाथरस, अलीगढ़, फतेहपुर सीकरी आदि 18 सीटों का रुख तय होता है। इन 18 लोकसभा सीटों में 120 विधानसभा सीटें पर जाट वोट असर रखता है। 2014 में वेस्ट यूपी से 4 सांसद संजीव बालियान (मुजफ्फरनगर), भारतेंदु सिंह (बिजनौर), सत्यपाल सिंह (बागपत) और चौधरी बाबूलाल (फतेहपुरी सीकरी) से जीते हैं।
2013 में मुजफ्फरनगर दंगे के बाद वेस्ट यूपी का राजनीतिक और सामाजिक ताना बाना ही बदल गया। बीएसपी का दलित-मुस्लिम, आरएलडी का जाट-मुस्लिम और एसपी का मुस्लिम-पिछड़ा समीकरण बिगड़ गया था। बीजेपी ने सवर्ण वोटों के साथ जाट और दूसरे पिछड़ों को साधकर 2014 में कामयाबी हासिल की थी। दंगे के बाद यहां चौधरी चरण सिंह के वक्त तैयार हुआ सियासी ‘अजगरÓ यानी अहीर, जाट, गुर्जर और राजपूत और ‘मजगरÓ मतलब मुसलमान, जाट, गुर्जर और राजपूत की एकजुटता भी धराशाही हो गई थी। यहां तक कि किसानों की लड़ाई लडऩे वाले महेंद्र सिंह टिकैत का परिवार भी इस किसान बिरादरी (जाटों) को बीजेपी के पक्ष में जाने से नहीं रोक पाई थी। दंगे के साथ कैराना से पलायन, लव जिहाद जैसे मुद्दों से खाई बढ़ती चली गई। दरअसल, चौधरी टिकैत जाटलैंट में चौधरी चरण सिंह की नीति मुसलमान के साथ आगे बढऩे की रखते थे। वह अपने हर आंदोलन में गुलाम मोहम्मद जोला से ही अध्यक्षता कराते थे।
- क्या रहेगा रुख
मौजूदा लोकसभा चुनाव में वेस्ट का जाट किसका साथ देगा? आरएलडी उनका भरोसा जीतेगा। अजित सिंह और जयंत चौधरी की ‘सद्भाव यात्राÓ और सांप्रदायिक एकता सभाओं से बना माहौल हालात बदलेगा या दंगे के मुकदमे वापसी के दांव चलने वाली बीजेपी संग 2014 की तरह साथ देगा, लेकिन सियासी जानकार मानते है कि माहौल बदल रहा है। फिलहाल चुनावी माहौल में जाट समाज अजित सिंह की तरफ झुकाव दिखाने लगा है। बदलाव की एक वजह यह भी है कि 2014 के चुनाव में एसपी, बीएसपी और आरएलडी अलग चुनाव लड़े थे। इस बार तीनों साथ हैं।इसके साथ ही केंद्र और प्रदेश की सरकारों की तरफ से किसान हित में उम्मीद के मुताबिक कदम नहीं उठाने की नाराजगी भी हैं। खासकर गन्ना मूल्य भुगतान, बड़ी बिजली दरें, 15 साल पुराने ट्रैक्टर की बंदी, किसान आंदोलन का दमन नाराजगी की वजह हैं। इस बदलाव पर बीजेपी की पैनी नजर हैं। इसी के साथ गठबंधन के लिए चुनौती यह होगी कि दंगे के बाद जाट मुस्लिम के बीच पैदा खाई पट जाए और वेस्ट में जाट और जाटव (दलित) अपनी पुरानी अदावत भूलकर साथ आ जाए, तब तस्वीर जुदा होने से इनकार नहीं किया जा सकता। आरएलडी के प्रदेश प्रवक्ता सुनील रोहटा का कहना है कि जाट समुदाय गठबंधन के साथ रहेगा। पहले फेज की सात सीट गठबंधन जीतेगा। बीजेपी के वेस्ट यूपी प्रवक्ता गजेंद्र शर्मा का कहना है कि 2014 वेस्ट यूपी मे फिर रिपीट होगा।
- खाप भी रखती है सियासत में असर
वेस्ट यूपी में ज्यादातर दलों के उम्मीदवार खाप चौधरियों की चौखट पर दस्तक देते रहे हैं। हालांकि, खाप चौधरियों ने हमेशा खुद को अराजनीतिक बताया। बालियान खाप के मुखिया चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने 1991 के चुनाव में बड़े की सलीके से बीजेपी की तरफ इशारा कर दिया था। 1996 में भारतीय किसान कामगार पार्टी (वर्तमान राष्ट्रीय लोकदल) के पक्ष में टिकैत ने वोट देने को कह दिया था। 2007 में खतौली विधानसभा क्षेत्र से महेंद्र सिंह टिकैत के पुत्र और भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत ने सियासी चोला पहनाकर चुनाव लड़ा, लेकिन वह हार गए थे। 2012 में अमरोहा लोकसभा सीट से भी राकेश को हार का मुंह देखना पड़ा था। कई बार सियासी दलों ने खाप चौधरियों के पसंदीदा को कैंडिडेट बनाया। कलस्यान खाप राजनीति दोनों में भी सक्रिय हैं। चौधरी मुख्तयार सिंह खाप चौधरी रहे और बाबू हुकुम सिंह राजनीति में बड़ा नाम कमाया। हालांकि बालियान खाप के चौधरी नरेश टिकैत कहते हैं कि खाप हमेशा सामाजिक संगठन हैं। हमारा किसी भी प्रत्याशी या दल के प्रति न तो समर्थन है और न विरोध करते है। यहां सभी का आदर हैं।
खाप के नाम गांव और गोत्र और जाति
सलकलायन-तोमर , बालियान-रघुवंशी, गठवाला-मलिक, शरपा , दहिया, बत्तीसा , राणा, कालखंडे, लाटियान, राठौड़-राठी , कर्णवाल, चवालीसा, तगा- त्यागी -ब्राह्मण, चौहान मेरठवासा, बदनू, सुजाल, छपरौली चौबीसी। इनके अलावा सादात-ए-बारहा मुस्लिम(सैय्यद), कलस्यान-चौहान (गुर्जर) खाप हैं।