जाट समुदाय भारत में मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और गुजरात आदि राज्यो में बसते हैं। पंजाब में यह जट ;जट्टद्ध कहलाते हैं तथा शेष प्रदेशों में जाट कहलाते है। राजस्थान, उत्तर प्रदेश और दिल्ली जैसे राज्यों में जाट जाति अन्य पिछड़ा वर्ग के रूप में वर्गीकृत की गयी हैं।
दोनों राज्यों के जाट अपने-अपने राज्य में महत्वपूर्ण मतदाता हैं, जिसके कारण दोनों का चुनाव में महत्व है।
यूपी के जाट समुदाय उत्तर प्रदेश की राजनीतिक दलों के लिए अहम मुद्दा है। ऐसे में आपको बता दें कि जाट समुदाय उत्तर प्रदेश की आबादी का कुल 5 प्रतिशत हिस्सा है ऐसे में जाट समुदाय सूबे की सियासी समीकरण को बनाने और बिगड़ने की ताकत रखते हैं।
वहीं राजस्थान में जाट समुदाय की आबादी का कुल 9 प्रतिशत हिस्सा है लेकिन आज तक ये अपनी जनसंख्या और एकता से वंचित है।
चलिए अब हम आपको दोनों में कुछ अंतर बताते हैं
राजघराने की बात कर तो राजस्थान में भरतपुर और धौलपुर जाट राजघराने हैं, जो अंग्रेजो के अधीन जाने से पूर्व भारत के सबसे शक्तिशाली राजघराने थे। वहीं उत्तर प्रदेश की बात करें तो उत्तर प्रदेश में कुचेसर ;बुलंदशहरद्ध, हाथरस ;मुरसानद्ध और मथुरा ;सोंखद्ध रियासते रहीं है।
1.राजस्थान और उत्तरप्रदेश के जाट अपने नाम के साथ अधिकतर चैधरी टैग यूज करते है , जोधपुर, बिरूआ, अजमेर , भीलवाड़ा , टोंक के जाट तो सीधा ही अपने नाम के साथ चैधरी लगाते है , जबकि उत्तर प्रदेश में जाट अधिकतर गोत्र ही इस्तेमाल करते है ।
- उत्तरप्रदेश के जाट अधिक पढ़े लिखे है ;साक्षरता दर के आधार परद्ध लेकिन सर्विसेज में ज्यादा राजस्थान के जाट मिलते है ।
- उत्तरप्रदेश के जाट रोब रूतवा यानि शान सौकत में ज्यादा उत्साहित रहते है जबकि राजस्थान के जाट रूढ़िवादी है और इन सब में अपने बच्चों को नहीं दखना चाहते , हालांकि पिछले कुछ वर्षों में यह सूरतेहाल बदला है ।
- अगर कट्टर पन की बात करें तो राजस्थान के जाट यूपी के जाटों में समानता देखी जा सकती है, यह इस तथ्य से स्पष्ठ होता है कि लगातार सबसे अधिक सालों तक जाट सांसद नागौर, राजस्थान 1971 से अब तक लगातार जाट सांसदद्ध बनते आ रहे है , वहीं बागपत, उत्तरप्रदेश से 1967 से लेकर आज तक जाट सांसद ही है
- राजस्थान और उत्तरप्रदेश के जाट अपने अपने राज्य की महत्वपूर्ण कौमें है , कृषि के क्षेत्र में व सेना में इनका योगदान सबसे ज्यादा है लेकिन अंतर ये है कि यूपी के जाट अपनी ताकत जानते है तभी तो चै. चरणसिंह देश के प्रधान मंत्री तक बन गए । लेकिन राजस्थान के जाट अपने संख्याबल से परिचित नहीं है , जिससे आजतक वह अपनी काॅम का मुख्यमंत्री नहीं बना सके है ।
- राजस्थान के जाट भारत के प्रत्येक कोने में फैलकर अपने संगठन , सभाएं , सम्मेलन आदि आयोजित करते रहते है जबकि उत्तरप्रदेश के जाटों में ऐसा कम देखने को मिलता है ।
- अगर जाटों की बड़ी गोत्रों की बात की जाए तो मलिकों को छोड़कर सभी गौत्रें राजस्थान मूल की है या राजस्थान में अधिक पाई जाती है जैसे पुनिया , ठुकेरला, बालियान, मलिक, घणघस, सिहाग, बेनीवाल आदि।
- राजस्थान के जाट आज भी अपने बच्चों की कम उम्र में ही शादी करना पसंद करते है , जबकि उत्तर प्रदेश के जाट अधिक जागरूक है और सही उम्र में ही बच्चों के हाथ पीले करते है ।
- शायद ये पूरी तरह सही नहीं है लेकिन गैर जाटों के विचार ये है कि राजस्थान के जाट अधिक शांत , समझदार होते है जबकि उत्तर प्रदेश के जाट सादगी और तेज तर्रर किस्म के होते है ।
- राजस्थान के कई इलाकों में सदियों पहले जाट गोत्रों ने गणतन्त्रों के रूप में शासन किया है जैसे नागौर के दहिया जाटों ने लगभग 850 सालों तक विमलराज से पीपा देव तक राज किया , इसके अलावा सारण , जोहिया , सिहाग , बेनीवाल , भूकर ,खसवां , साहू, गोदारा , जाखड़ , श्योराण , आदि भी जाट गणतन्त्र रहे। जबकि उत्तर प्रदेश में हाथरस के सबसे प्रसि( शासक जाट महानुभाव, राजा महेंद्र प्रताप ;1886-1979द्ध थे, जिन्हें आर्यन पेशवा के नाम से जाना जाता था। राजा घनश्याम सिंह के तीसरे पुत्र, उन्हें हाथरस के राजा हरनारायण सिंह ने गोद लिया था।
- देखा जाए तो जाटों के पहनावे भी उत्तर प्रदेश व राजस्थान में अलग अलग है । पहनावे से खानपान तक में राजस्थानी शैली का अपना ही रंग-ढंग है। आज भी यहां के लोग अपने परंपरागत परिधानों में नजर आते हैं। बात अगर राजस्थानी आभूषणों की हो, इसका भी अंदाज कुछ अलग ही नजर आता है। यहां के आभूषणों में मुगलकालीन प्रभाव दिखता है। या यूं कहें कि यहां का आभूषण शिल्प उतना ही प्राचीन है, जितना कि परंपराओं का इतिहास।
यूपी के जाटों को खेतीवाड़ी के साथ-साथ ठाठ से रहना सहना ज्यादा पसंद होता है