महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी शोधनिबंध के लेखक हैं । पूज्य नीलेश सिंगबाळजी एवं श्री. शॉन क्लार्क सहलेखक हैं । विश्वविद्यालय द्वारा वैज्ञानिक परिषदों में प्रस्तुत किया गया यह 56 वां शोधनिबंध था । इससे पूर्व 14 राष्ट्रीय एवं 41 अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक परिषदों में विविध शोधनिबंध प्रस्तुत किए गए हैं । इनमें से अंतरराष्ट्रीय परिषदों में प्रस्तुत किए गए 3 शोधनिबंधों में उन परिषदों में सर्वोत्कृष्ट शोधनिबंध पुरस्कार प्राप्त हुआ है ।
पू. सिंगबाळजी ने तनाव एवं आत्महत्या के संदर्भ में किए गए आध्यात्मिक संशोधन, व्यक्ति की आत्महत्या के मूलभूत कारण और उस पर उपाय आदि महत्त्वपूर्ण सूत्र इस अवसर पर स्पष्ट किए । आत्महत्या रोकने के लिए किए जा रहे प्रयत्नों का सार प्रस्तुत करते समय पूज्य सिंगबाळजी ने कहा कि नामजप अत्यंत सरल; परंतु उपयुक्त आध्यात्मिक साधना है । नामजप के कारण व्यक्ति में स्वभावदोष-निर्मूलन के लिए आवश्यक ऊर्जा निर्माण होती है । संशोधन में पाया गया है कि ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ वर्तमानकाल के लिए अत्यंत उपयुक्त नामजप है । इसके साथ ही ‘श्री गुरुदेव दत्त’ जप पूर्वजों के कष्टों से रक्षा करता है । इसके साथ ही स्वभावदोष-निर्मूलन प्रक्रिया द्वारा अपने मन के स्वभावदोषों पर मात करना आसान हो जाता है । मानसिक आरोग्य के अंतर्गत ‘वृद्धि एवं प्रतिबंध’ के लिए लोगों को उपरोक्त सूत्र आचरण में लाने से आत्महत्या के प्रमाण में निश्चितरूप से सहायता होगी ।
श्री. रूपेश रेडकर, संशोधन विभाग,
महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय,