इस वक्त लोकतंत्र का महापर्व मनाया जा रहा है। जो भी पार्टी इस महापर्व में विजय हासिल करेगी वह पांच साल तक भारत के भविष्य व वर्तमान का निर्माण करेगी। लेकिन अगर किसी पार्टी ने विजय हासिल नहीं की तो फिर चलेगा मेलजोल का कार्यक्रम। अब यह किसके साथ किसकी और किस तरहा से संतुलन बैठेगा ये तो समय ही बताएगा लेकिन सवाल यह है कि आखिर हम किस लोकतंत्र पर गर्व करते हैं । लोकतंत्र का दंभ एक सूखा अभिमान नहीं है क्या। रोजगार नहीं हैं, शिक्षा का स्तर गिरता चला जा रहा हैं। आम व्यक्ति ओर आम ओर खास व्यक्ति ओर खास होता जा रहा हैं। जिस प्रकार पार्टियां चुनावों में वादे करती है क्या यह इनडॉयरेक्टली रूप से वोटों की खरीद नहीं हैं। हिन्दू को मुस्लिम से बात करते हुए मन में कहीं छुपी हुई सी एक अविश्वास की भावना होती है शायद कुछ यहीं स्थिति मुस्लिम भाईयों में होती होगी। हम एक थाली में खाते है। एक साथ काम करते है फिर भी मुस्लिम इलाकों में एक हिन्दू व हिन्दू इलाकों में एक मुस्लिम अजीब से खौफ में रहता है जिसका अंदाजा उसे नहीं होता लेकिन समय समय पर असुरक्षा की भावना उसके सामने आती रहती है। राजनीतिक पार्टियां इस दूरी को कम करने के बजाए बढ़ा रही हैं। कोई ७२ हजार रुपए साल का देने का वादा करता है तो कोई बिना परीक्षा के सरकारी नौकरी देने का वादा करता हैं। तो कोई हमें डराता है तो कोई राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ाता है लेकिन यह कोई नहीं कहता है कि अपने कर्तव्यों अपने परिवार का सही से पालन पोषण करू यह भी एक राष्ट्रवाद हैं। क्या हिन्दुस्तान- पाकिस्तान ही राष्ट्रवाद की श्रेणी में आता हैं। कोई धारा -३७० हटाने की बात करता है तो कोई राष्ट्रद्रोह को खत्म करने की बात करता है लेकिन क्या कारण है कि पहले आम आदमी को शिक्षा की चिंता फिर वह रोजगार की तलाश में भटकता रहता हैं। देश को भ्रष्टाचार खोखला करता जा रहा है। क्यों कोई लोगों को जागरूक करने की बात नहीं करता। बड़ी-बड़ी रैलियोंं में किए गए वादों से सुशोभित जनता अपने सपनों को साकार करने के लिए वोट डालती है बाद में उसके हाथ में क्या आता हैं। केवल झूठा दिलासा व अगले चुनाव में वोट डालने का अधिकार।
झूठा राष्ट्रवाद, झूठे अधिकार
शायद यहीं कारण है कि जब कोई आंदोलन खड़ा होता है तो जनता आशा भरी निगाहों से उसकी ओर आकर्षित होती है। जिसका उदाहरण अन्ना आंदोलन में देखा गया है जहां एक आशा से जनता ने इतिहास में कुछ महीनों की पार्टी को दिल्ली की सत्ता दे दी तो वहीं दूसरी ओर इस लोकतंत्र में बेगूसराय से चुनाव लड़ रहें कन्हैया के प्रचार के लिए दूर दूर से विशिष्ट व्यक्ति पहुंच रहें हैं।
जोगेन्द्र मान, संपादक जाट जागरण पत्रिका