श्राद्ध द्वारा उत्पन्न ऊर्जा मृत व्यक्ति की लिंगदेह में समाई हुई त्रिगुणों की ऊर्जा से साम्य दर्शाती है; इसलिए अल्पावधि में श्राद्ध से उत्पन्न ऊर्जा के बल पर लिंगदेह (व्यक्ति का मृत्यु उपरांत का सूक्ष्म देह) मर्त्यलोक पार करता है । एक बार जो लिंगदेह मर्त्यलोक पार कर लेता है, वह पुनः लौटकर पृथ्वी पर रहनेवाले सामान्य व्यक्ति को कष्ट देने के लिए पृथ्वी की वातावरण-कक्षा में नहीं आ सकता । इसीलिए श्राद्ध का अत्यधिक महत्त्व है; अन्यथा विषय-वासनाओं में फंसा लिंगदेह, व्यक्ति की साधना में बाधाएं उत्पन्न कर उसे साधना से परावृत्त कर सकती हैं ।’
पद्मपुराण में ऐसा क्यों कहा है कि ‘पितृकार्य देवकार्य से श्रेष्ठ है ’?
‘साधना न करनेवाला कोई व्यक्ति यदि पितरों के लिए कोई कार्य करे, तो उस पर पितरों की कृपा होती है तथा उसका जीवन सुखी होता है । तदुपरांत वह व्यक्ति साधना की ओर प्रवृत्त होकर देवकार्य भली-भांति कर सकता है । अतएव देवकार्य की अपेक्षा पितरों से संबंधित कार्य अधिक महत्त्वपूर्ण है।
‘पितृकार्य को कर्मकांड में प्रत्यक्ष कर्तव्य का स्थान दिया गया है । कर्तव्य करना, यह कर्म का प्रथम चरण है; क्योंकि कर्तव्य करना अर्थात माया को प्रत्यक्ष एवं निकटता से अनुभव करना एवं कर्म करना, अर्थात कर्तव्य से जन्मे ईश्वर के मायास्वरूपी नियोजन के परिणाम का अवलोकन करना । कर्तव्य के प्रति भाव की निर्मिति होने से जीव प्रत्यक्ष कर्म का आनंद भोग सकता है । इसी से ईश्वर के प्रति व्यक्त भाव की निर्मिति होती है । भाव प्रत्यक्ष कर्तव्यस्वरूप सगुण स्तर का होता है, जबकि भाव का अगला चरण अर्थात सर्व कर्ममय अर्थात ईश्वरमय होना, यह निर्गुण स्तर का है । प्रथम कर्तव्य एवं कर्म, उचित ढंग से कर, उससे उत्पन्न होनेवाले बोध से ही जीव देवकार्य तक पहुंच सकता है । अतएव पद्मपुराण में पितृकर्म एवं देवकर्म के माध्यम से ‘कर्तव्य-कर्म सिद्धांत’ स्पष्ट किया गया है । जो पितृकर्म के लिए आधारभूत, ईश्वर के कार्यकारणभाव का महत्त्व समझ सकता है, वही देवकार्य उतनी ही श्रद्धा एवं भाव से कर सकता है । इसीलिए ईश्वर की ओर यात्रा में प्रथम कर्तव्यरूप चरण ‘पितृकर्म’ है, द्वितीय चरण ‘देवकर्म’ है एवं तृतीय चरण ‘प्रत्यक्ष ईश्वरीय कार्य’ अर्थात समष्टि कार्य है । इस प्रकार जीव शनैः-शनैः मोक्ष को प्राप्त होता है ।’
इस वर्ष श्राद्ध 14 सितंबर, 2019 से 28 सितंबर, 2019 के बीच हैं। इस कालावधि में श्राद्ध कर्म के साथ ही दत्तात्रेय देवता का ‘श्री गुरुदेव दत्त।’ ये नामजप अवश्य करना चाहिए।
इन सभी विषयों पर हिन्दू जनजागृति की कु किरण महतो ने जानकारी दी।