शहरों की खिड़की से बिखरते गांव की झलक
शहरों में जीवन जीने वाले शिकायत करते रहते हैं कि जाम हैं। यातायात व्यवस्था सही नहीं हैं। पानी नहीं है लेकिन क्या कभी किसी ने शहरों की खिड़की से कभी गांव को झांका हैं। शहर में आपके पास रोजगार तो हैं। यातायात व्यवस्था सही नहीं है वहां आपको ज्यादा से ज्यादा एक घंटा किसी यातायात का इंतजार करना पड़ता होगा। या फिर ज्यादा क्या होगा आपको भीड़ का सामना करना पड़ेगा । नल में पानी नहीं आएगा तो आप दूकान से पानी की बोतल खरीद कर पी लेंगे। खंभों पर लाईट नहीं है तो आप अपने फोन की लाईट जलाकर रास्ता पार कर लेंगे । लेकिन क्या आपने इससे आगे की समस्यां के बारे में सोचा है एक ऐसी जगह जहां ना रोजगार हो ना किसी प्रकार की यातायात की व्यवस्था। आपको एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए कई दिन पहले विचार करना पड़े। किसी प्रकार की लाईट की व्यवस्था नहीं दिन में कुछ घंटें ही लाईट आए जिससे आप ना फोन चार्ज कर पाओ ना अन्य कार्य। ओर पीने के पानी की भी कोई व्यवस्था नहीं । रोजगार नहीं तो पैसा नहीं, पैसा नहीं तो आप खरीद कर खाना ही मुश्किल से खा पाएंगे तो पानी क्या खाक पीएंगे।
जी हां में बात कर रहा हूं आसपुरा गांव की जो कि सीकर, राजस्थान का एक हिस्सा हैं। नौजवान नौकरी की आस में या तो शहरों की ओर जा रहा हैं या अपनी ऊर्जा बेकार की चीजों में गवा रहा हैं। कहते है युवा अवस्था बहुत ही अनमोल होती है लेकिन अगर यह युवा अवस्था साधनों के अभाव में क्या किया जाए कैसे किया जाए इसी सोच में बेकार हो तो आपकी मानसिक और शारीरिक स्थिति क्या होगी आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं। भारत की आधी से ज्यादा आबादी कहते है गांवों में निवास करती है लेकिन समय के साथ साथ गांवों का विकास होने की जगह गांवों की स्थिति लगातार खराब होती जा रही हैं। किसान की आमदनी घट रहीं है। जब भारत चांद पर जाने के लिए इतिहास रच रहा है वहीं दूसरी ओर भारत की जनता का पेट भरने वाले हाथ मौत को गले लगा रहें है या फिर अपनी नौजवान पीढी को केवल बेकार की बातों में संसाधनों की कमी से इधर उधर भटकते हुए देख रहें है क्या यहीं विकास हैं। गांव एक खूबसूरत जगह है लेकिन यहां छोटी छोटी समस्याएं पानी, बिजली, सड़क, रोजगार आदि से लोगों को जुझना पड़ रहा है क्या यही विकास की परिभाषा हैं। इस बारे में जरा सोचें ओर तय करें कि आधुनिकता व विकास की परिभाषा क्या हैं। केवल शहरों को विकास के रास्ते पर लेकर जाना या फिर गांवों में युवा ऊर्जा को बेकार की चीजों में नष्ट होते हुए देखना। slovenska-lekaren.com