मान गोत्र का इतिहास mann jat history
एक इतिहासकार ने लिखा है कि उदयपुर रियासत में कोड खोखर नाम का एक सरदार रहता था। उसका संबंध चौहान संघ से होता था। किसी कारण से वह ददरेडे नामक गांव में जाकर बस गया जिसके बाद वह मल्लूकोट में आ बसा। जानकारी के अनुसार पल्लूकोट और ददरेडा दोनों मारवाड में हैं।
इसी कोड खोखर से मान गोत्र का निर्माण हुआ । कोड खोखर की चार संताने हुई मान, सुहाग, देसा व दलाल हुए। इन्हीं से जाट समाज के चार गोत्रों का मान की संतान मान जाट कहलाए जबकि सुहाग की संतान सुहाग गोत्र के जाट कहलाए इसके अलावा देसा से देसवाल व दलाल से दलाल जाट गोत्र का निर्माण हुआ।
अगर हम इतिहास पर नजर डाले तो हमें पता चलता है कि कोड खोखर का पुत्र मान चौहान संघ में था। चौहान संघ में ज्यादातर लोग जाट गोत्र से ही संबंध रखते थे। वह सुहाग गोत्र के प्रवर्तक सुहाग का सहोदर था। लेकिन किसी कारण से मान चौहान संघ छोडकर जाट संघ में जाकर मिल गया। जिला हिसार में राजथल और जिला करनाल में बलेग्राम मान गोत्र के गाँव हैं। अन्य प्रान्तों के कई ग्रामों में मान गोत्र के जाट हैं।
लेकिन अगर हम एक अन्य इतिहासकार पर नजर डाले तो हमें पता चलता है कि यह भाटी जाटों की एक शाखा है, ऐसा भाट-ग्रन्थों पढने से पता चलता है। इनकी वंशावली जो जाटों की लिखी हुई है, उसमें भाटियों को सूर्यवंशी लिखा हुआ मिलता है। साथ ही यह भी लिखा है कि भक्त पूरनमल के पिता शंखपति का विवाह इन्हीं लोगों में हुआ था। लगभग पन्द्रह सौ वर्ष पहले इनका एक समूह देहली के पास बलवांसा नामक स्थान में गजनी से आकर आबाद हुआ था। मानसिंह जिसके नाम पर इस वंश की प्रसिद्धि बताई जाती है, उसका पुत्र बीजलसिंह ढोसी ग्राम में आकर अवस्थित हुआ। ढोसी नारनौल के पास पहाड़ों में घिरा हुआ नगर था। इस स्थान पर अब भी दूर-दूर के यात्री आते हैं, मेला लगता है। उसे समय के कई मन्दिर और कुंड यहां आज भी मिलते हैं। पहले यहां गंडास गोत्र के जाटों का अधिकार था।
लेकिन इनके राजा ने नागल की पुत्री गौरादेवी से शादी की और उसके बाद ढोसी से 3 मील दूर जाकर गौरादेवी के नाम पर गोरीर नाम का गांव बसाया गया। समय के साथ साथ उन्होंने अपने राज्य का विस्तार किया।
अगर बात करें ठाकुर देशराज के इतिहास लेखक की तो उन्होंने लिखा है कि यदुवंश में एक गज हुआ है। जैन पुराणों के अनुसार गज कृष्ण का ही पुत्र था। उसके साथियों ने गजनी को आबाद किया। भाटी, गढ़वाल, कुहाड़, मान, दलाल वगैरह जाटों के कई खानदान गढ गजनी से लौटे हुए हैं।
अब अगर हम मान वंश के देश पर नजर डाले तो हमें पता चलता है कि मार्कण्डेय पुराण में मान वंश का देश उत्तर दिशा बताया गया है। 800 ई० पू० में इनका राज्य कैस्पियन सागर के दक्षिण में था जो मन्नाई राज्य कहलाता था जो कि आज अर्मेनिया (अरी-मान) नाम से है।
मान (भुल्लर-हेर शाखा गोत्र) – भाट की पोथी अनुसार मान, दलाल, देसवाल गोत्रों की उत्पत्ति – वि० संवत् 808 (सन् 751 ई०) में महाराजा अनंगपाल प्रथम के समय अजमेर (राजस्थान) की ओर से राजपूतों का एक काफिला (समूह) आकर वर्तमान गांव सीलौठी (जि० रोहतक) में आबाद हो गया। यहां पूनिया गोत्र के जाटों से इन राजपूतों ने डौले लिए तथा रिश्ते-नाते स्थापित किये। एक राजपूत जिसने एक जाट लड़की से शादी की थी, के चार पुत्रों – मानसिंह, दल्लेराम, देशराम, सहीराम – के नामों पर चार जाट गोत्र 1. मान 2. दलाल 3. देसवाल 4. सिहाग प्रचलित हुए। (दलाल गोत्र के भाट की पोथी का लेख)।
“हैण्डबुक आफ जाट्स, गूजर्स एण्ड अहीर्स” के पृष्ठ 26 और 28 पर लिखा है कि “मान और दलाल ये दोनों, राठौर राजपूत धन्नाराव के पुत्र मान और दिल्ले की सन्तान हैं। धन्नाराव ने एक बड़गूजर जाट स्त्री से विवाह किया था। उससे ये पैदा हुए। उसके एक और पुत्र देसल की सन्तान देसवाल हैं।”
लेकिन कई जगहों पर इस बात का खंडन भी मिलता है वहां कहा जाता है कि राजपूत संघ तो सातवीं शताब्दी में बना जबकि ऊपरलिखित जाट गोत्र प्राचीन काल से प्रचलित हैं। एक इतिहासकार का मत भी है कि “जाटों से राजपूत बने परन्तु राजपूतों से एक भी जाटवंश प्रचलित नहीं हुआ।” ऊपर लिखित मान, दलाल, देसवाल जाट गोत्रों की उत्पत्ति के विषय में जो लेख हैं वे बेबुनियाद, मनघड़ित तथा असत्य हैं।
भटिण्डा के मान जाट, हेर और भुल्लर गोत्र के जाटों को भाई मानते हैं। हेर,भुल्लर, सिहाग गोत्रों का आज से 2000 वर्ष पहले ईरान में बसा होना पाया जाता है।”
“भारत में जाटराज्य” किताब को पढने पर पता चला कि “महाभारत में लड़ने वाले यदुवंशी हन्यमान या मान क्षत्रिय का वर्णन है। इनका एक बड़ा जनपद (प्रान्त) था। यह हन्यमान या मान चन्द्रवंश की एक बड़ी शाखा है। हेर और भुल्लर जाट गोत्र इन्हीं मानों की शाखा गोत्र हैं।”
महाभारत भीष्मपर्व अध्याय 9 में इस मान जाटवंश का हन्यमान जनपद नहीं परन्तु इनके दो जनपद (राज्य) मानवर्जक और मधुमान लिखे हैं। जब महाभारतकाल में इन मान जाटों के दो अलग-अलग राज्य थे तो निस्सन्देह इस वंश की उत्पत्ति महाभारत काल से बहुत पहले की है।
अगर एक अन्य इतिहासकार के लेखकों को हम देखते है तो हम पाते है कि “सम्राट् कनिष्क (सन् 120 से 162 ई० तक) के बनाए धार्मिक स्थान की मरम्मत करते समय यूनानी भाषा में लिखा हुआ एक प्रसिद्ध सुर्ख कोतल शिलालेख प्राप्त हुआ था। यह शिलालेख दो व्यक्तियों ने लिखा था जिनके नाम मिहरमान और बुर्जमिहर पुहर लिखे हैं। उस साम्राज्य के ये दोनों महत्वपूर्ण पदाधिकारी थे। उनके ये नाम ईरानी भाषा में थे। दोनों जाट थे। एक का गोत्र मान तथा दूसरे का गोत्र पंवार था।”
मार्कण्डेय पुराण में मानवंश का देश उत्तर दिशा में लिखा है।” “वायु पुराण में इनको मौन (मान) लिखा है और विष्णु पुराण में भी मौन लिखा है। सम्भवतः ये मान कैस्पियन सागर के पश्चिम में मन्नाई लोग थे जिनका राज्य आठवीं शताब्दी ई० पूर्व में था जो मन्नाई राज्य कहलाता था। आजकल उसका नाम आर्मिनियां (अरि-मान) है।” डी० सी० सरकार ने दक्षिण महाराष्ट्र में मान राज्य लिखा है
इनके सिक्के (मुद्रा) गोआ (कोंकण क्षेत्र) में मिले हैं। बिहार प्रान्त में जिला गया के गोविन्दपुर गांव से शक संवत् 1059 (सन् 1137 ई०) का एक शिलालेख मिला है जिस पर लिखा है कि इस क्षेत्र में मानवंश का राज्य था। इस राज्य के दो सम्राटों के नाम वर्न मान और रुदर मान लिखे हैं।
ेयह लिखने का उद्देश्य यह है कि विष्णु पुराण के अनुसार मानगोत्र के जाट राजाओं का भारतवर्ष में 300 वर्ष राज्य रहा।
इसके अलावा हम देखते है कि “लगभग 1500 वर्ष पहले इन मान जाटों का एक समूह गजनी से आकर देहली के पास जि० करनाल बला वांसा नामी स्थान में आबाद हुआ था। बीजलसिंह मान ढौसी ग्राम में आकर आबाद हुआ। यह ढौसी ग्राम नारनौल के पास पहाड़ों से घिरा हुआ था। यहां पर उस समय के बने हुए कई मन्दिर और कुण्ड हैं। पहले वहां गंडास गोत्र के जाटों का अधिकार था। राजा बीजलसिंह ने अपनी रानी गौरांदेवी के नाम पर ढौसी गांव से तीन मील दूर शेखावटी में सुप्रसिद्ध गांव गौरीर बसाया। आगे उसने जितना भी हो सका, अपना राज्य बढाया गया। बीजलसिंह से 20 पीढ़ी बाद सरदार रूपरामसिंह मान हुआ। उस समय इस प्रदेश पर शेखावत आ चुके थे। खेतड़ी के शेखावतों से रूपरामसिंह का 10-12 वर्ष तक संघर्ष रहा, किन्तु उसने शेखावतों की अधीनता स्वीकार नहीं की। रूपरामसिंह से चार पीढ़ी बाद कु० नेतरामसिंह मान गौरीर गांव में हुए। इसने सीकर के रावराजा से आजीवन मोर्चा लिया। मान जाटों के अनेक दल थे जो अनेक प्रदेशों में बसे हुए हैं।”
इस वंश के प्रसिद्ध वीर ठिड नामक सरदार ने करनाल (हरियाणा) में लादिया किले पर अधिकार करके इस वंश को प्रसिद्धि दी। उसने तहसील मुक्तेश्वर (जि० फरीदकोट) में गांव थेडी ककरसर बसाकर मानराज्य की नींव डाली। पटियाला की स्थापना समय ये मान लोग रड़ नामक गांव में जाकर बस गए। इस वंश के भागमल मान ने नौरंग मण्डी (पाकिस्तान) में), डबवाली (हरियाणा में) और मोर साडरनी (पंजाब में) बसाई। इसके पोते ने राठी नामक किला बनवाया जो कि अब पटियाला में है। इसी वंश के कालू मान ने माड़ी किले का निर्माण कराया जो कि अब फिरोजपुर में है। यह गुरु हरराय का शिष्य बनकर प्रसिद्ध हुआ। इन्हीं दिनों इस पटियाला राज्य में मौड़, मानवाला, मानखेड़ा, मानसा पर भी मान जाटों ने अधिकार किया।
पटियाला राज्य की वर्तमान भूमि के अधिकांश भाग पर प्राचीन शासक मान ही थे। कालु मान को सिद्धू जाटों ने परास्त कर दिया। तब उनके वंशधर नाभा के सलवरा, मखेड़ी आदि गांवों में और सोनीपत की ओर चले गये। नाभा में विस्तार पाने पर बालादेवाला, गुण्डेला, दयालपुर आदि गांवों में फैल गये। यहां से मलोट, बाम, बनियावाला, शेरगढ़, लालपाई, आधन्नी, सोनखेड़ा, अबुलखनाणा आदि पटियाला राज्य मे गांवों में विस्तृत हो गये।
करनाल के मानों के घोगड़ीपुर और बला गांव इसलिए प्रसिद्ध हैं क्योंकि यहीं पर सर्वप्रथम करनाल के शासक मढान मुसलमान राजपूतों से युद्ध जीतकर मान जाट स्थिर हुए थे।
पंजाब की राजनीति, भारतवर्ष की सेना और जाट जाति के इतिहास में मान जाट ऊंचे से ऊंचे स्थान पर अधिष्ठित हैं। इनकी वीरता के कारनामे सिक्ख इतिहास और ब्रिटिशयुगीन प्रत्येक युद्ध के विवरणों में सदा सम्मानित शब्दों में वर्णित किए गए हैं।
भुल्लर और हेर जाट इसी मानवंश की दो प्रसिद्ध शाखा हैं जिनको मान भाईचारे में मानते हुए अपना ही रक्त-मांस बतलाते हैं। जहां-जहां मान लोग बसे हैं वहीं भुल्लर और हेर जाट भी पाए जाते हैं। मान, भुल्लर, हेर जाटों की पंजाब में बड़ी संख्या है जो कि सिखधर्मी हैं। ‘हीर स्याल’ की प्रेमगाथा में ‘हीर’ वंश (गोत्र) का नाम था। अम्बाला जिले की रोपड़ तहसील में हेर गोत्र के जाट सिक्खों की बहुसंख्या है।
मान जाट यू० पी०, हरियाणा तथा राजस्थान में वैदिकधर्मी हैं। मान जाट लम्बे कद वाले, गेहूं रंगे, खूबसूरत तथा बड़े बहादुर हैं। पश्चिमी पाकिस्तान के डेरा इस्माइल खान आदि क्षेत्रों में इन के लिए कहावत प्रसिद्ध है कि “मान-पूनिया चट्ठे, खान पीन में अलग-अलग, लूटने में कट्ठे”। अर्थात् ये तीनों जाटगोत्र उधर के आतंककारी बहुसंख्यक गिरोह थे।
भारत सरकार द्वारा सन् 1911 में कराई गई जनगणना के अनुसार पंजाब में मान जाटों की संख्या निम्न प्रकार से थी।
1. मान हिन्दू जाट – 12587 (जिले – शाहपुर, लायलपुर, रियासत लोहारू, कलसिया, पटियाला, जींद, नाभा)।
2. मान सिक्ख जाट – 37482 (जिले – अम्बाला, लायलपुर, रियासत पटियाला, जींद, नाभा)।
3. मान मुसलमान जाट – 5261 (जिले – अम्बाला, लायलपुर, रियासत जींद)।
कुल संख्या – 55330
इनके अतिरिक्त उत्तरप्रदेश में लगभग 3000 थी।
मान हिन्दू जाटों के हरियाणा में गांव ये हैं – जिला हिसार में मुण्ढाल, जिला करनाल में बला, घोगड़ीपुर, जिला रोहतक में इशरहेड़ी, लोवा कलां’ जो कि कालू मान ने बसाया।
“मुगल चक (जि० गुजरांवाला) जागीर की स्थापना करने वाला लधा मान जि० रोहतक के लोवा कलां गांव से वहां गया था। लोवा कलां गांव में उसके नाम से लधा पट्टी तथा लधा जोहड़ अब भी कहलाते हैं।” दिल्ली प्रान्त में पहलादपुर बांगर, होलंबी, खेड़ा मान जाटों के हैं।
हरियाणा में मान, सिहाग, दलाल, देसवाल जाटों का आपस में भाईचारा है। इनके आपस में रिश्ते-नाते नहीं होते हैं। परन्तु ये चारों एक माता-पिता के पुत्र नहीं हैं।
’ – लोवाकलां से जाकर 8 गांव मान जाटों के बसे हुए हैं – अलीपुर, खेड़ामान, होलंबी कलां, होलंबीखुर्द, नयाबासमान, पहलादपुर आदि।
राजस्थान में झंुझुनू जिले के गौरीर गांव भी मान जाटों का प्रमुख केन्द्र हैं।
थेडी ककरसर, पाकिस्तान में नौरंग मण्डी, हरियाणा में डबवाली, मोर साडरनी पंजाब में, लोवा कलान जिला बहादुरगढ में, इस्सरहेडी गांव बहादुरगढ में, मुगल चाक, है
जबकि दिल्ली में खेडा खुर्द, प्रहलादपुर बांगर, होलंबी कला, होलंबी खुर्द, अलीपुर, नयाबांस गांव मान जाटों के द्वारा ही बसाए गए है। अगर बात पंजाब की करें तो वहंा भी मान जाटों की संख्या काफी संख्या में मिलती है जिसमें मनवाला, मान खेडा, मानसा, अबूलखुराना, डिओनखेडा, सेनाखेडा, जय सिंहवाला, बम्बा, कृष्णपुरा, मिलते है।
अमृतसर में मोहाना, झाबल माना, गांव है होशियारपुर, मुकेरिया, डेरा बाबा नानक तहसिल में भी मान जाट मिलते है। हरियाणा में गंगनपुर, खेवाली, सिकंदरपुर, झिगावान, जैंती कला, मेहमुदपुर, सिरसा, पानीपत जिले में धर्मगढ, जाटोल पानीपत, रोहतक जिले में बारन, भिवानी जिले में भंडवा, धानी महू, मनडोला, तालू, करनाल जिले में बलाह, असंध, गोदीपुर, यमुनापार जिले में जगुरी, कैथल जिले में अटला, बाबा लाडाना, जींद में छपर, सिनसार, व हिसार में राज थाल गांव आते है।
अगर बात हम महाराष्ट की करें तो वहां टोकाडा, व राजस्थान में गणेश कालोनी, गणपति नगर, कटीपुरा, माचरा, मालवीय नगर, मानसरोवर कालोनी, मोती नगर, मुरलीपुरा, वैशाली नगर, वसुंधरा कालोनी,विद्ययानगर, जयपुर में श्यामपुरा, राजस्थान के चूरू जिले में धानी कुलरियान, बालूआ टेबा, धानी माना, खयाली, मानपुरा, सुराजगढ, बूचावास गांव है वहीं झुंझुनू जिले में अडोका, बीर गुरीर, नागोर में प्रडोड व सोनेली आती है जबकि अलायकी, भरवाना, बहोबीया, गोटडा, गोत्रा खालसा, रामगढ, काशिमपुरा, आते है अगर बात करें उत्तर प्रदेश की तो वहां भूला नबीरपुर, सलाबाद, धमैडा, बहलोलपुर, पानीयाली काशीमपुर, आदर्श नंगला, सानोली, मुनसाब नागला, मुज्जफरनगर, पीनाना, तुगलकपुर, आते है मेरठ जिले में परिचातघर, बिजनौर में अलीपुर मान, वेसपुर मान, आदि आते है
मध्यप्रदेश में बदारी, हरनावदा, देलनपुर, मुरैना, ग्वालियर आदि आते है।
अगर बात हम भारत से बाहर की करें तो हमें पाकिस्तान में भी मान जाट पाते है लेकिन वहां वे भूल्लर, हीर नाम से जाने जाते है । पंजाब के अमृतसर जालंधर, होशियरपुर, लुधियाना, फिरोजपुर व पटियाला, जिले में मिलते है ये लोग भारत पाकिस्तान के बंटवारे के समय वहां से यहां आ गए थे। अभी भी पाकिस्तान के फेसालाबाद , सीलकोट, नरोवाला, गुजरावाला, लाहौर, ओकारा, साहिवाल आदि में मिलते है।