तुसीर जाट गोत्र का इतिहास || HISTORY OF TUSHIR GOTRA
तुसीर जाट गोत्र का इतिहास || HISTORY OF TUSHIR GOTRA
जाट गोत्रों में तुसीर जाट भी एक प्रमुख गोत्र के रूप में देखा जाता है। तुसीर को तुषार, तुसार, तुखार, तुसियर, तुशियर, तूसर, तुशीर आदि नामों से भी पूकारा जाता है ये सब भाषा भेद के कारण है लेकिन असल में सभी एक ही गोत्र के विभिन्न नाम है।
तुषार एक चन्द्रवंशी गोत्र के रूप में जाना जाता है। बौद्धकाल में इनकों गठवाला कहा जाने लगा। कुछ अच्छे कार्य करने पर बादशाह ने इन्हें मलिक की उपाधि दे दी जिसके बाद से इन्हें गठवाला मलिक कहा जाने लगा। यह गोत्र भी काफी प्राचीन है। जानकारी के अनुसार महाभारत काल में ये काफी शक्तिशाली थे। महाभारत के कुछ गं्रथों में तुषारगिरि नामक पर्वत का वर्णन मिलता है जो बाद में हिन्दूकुश के नाम से काफी प्रसिद्ध हुआ। यह तुषारगिरि नाम तुषार जाटों के नाम पर ही रखा गया था जिससे पता चलता है कि उस समय तुषार जाटों की कितनी महानता थी। इतिहास में इस बात के प्रमाण मिले है कि महाभारत के युद्ध में तुषार सेना ने कौरवों की तरह से लडाई में हिस्सा लिया था।
छिकारा जाट गोत्र CHIKARA JAT HISTORY
एक इतिहासकार ने लिखा है कि ऋषिक तुषार तक्षशिला से शाकल, मथुरा, अयोध्या और पटना तक राज्य विस्तार करने वाली जाति सिद्ध होती है। अगर हम इस मत को माने तो पता चलता है कि प्राचीन काम्बोज देश हजारों वर्षों तक तुषार देश या फिर तुखारिस्तान कहा जाता था। चीन भारत की प्रथम मैत्री का प्रारंभ भी इनही तुषार जाटों के कारण संभव हुआ। जानकारी के अनुसार इतिहास में चीन की दिवान बनने के बाद हुणों ने चीन के पश्चिमी भाग पर चढाईयां प्रारंभ कर दी थी जिसको रोकने के लिए चीन के सम्राट ने ऋषिक तुषारों की सहायता चाही। सहायता के लिए एक सन्देश लेकर चीन से ऋषिक तुषारों के पास एक सन्देशवाहक पहुंचा। हांलाकि वह हुणों द्वारा पकड लिया गया था लेकिन किसी तरह वह बचकर तुषार जाटों के पास पहुंच गया। चीन के राजा का संदेश मिलने पर ऋषिक तुषारों ने हूणों पर घातक आक्रमण शुरू कर दिए। जिसके पश्चात हूण मंगोलिया की तरफ भाग निकले। यही चीन और भारत की पहली दोस्ती की कहानी है। ऋषिक तुषारों की इस प्राचीन आवास भूमि का नाम उपरला हिन्द के नाम से जाना जाता है।
इतिहास की पुस्तकों से जानकारी प्राप्त होती है कि तुषारों का राज्य गजनी एवं सियालकोट दोनों पर था और इनके बीच का क्षेत्र तुषारस्थान के नाम से जाना जाता था। वहीं दूसरी ओर कठ और मलिक गणराज्यों ने पंजाब में सिकन्दर की सेना से युद्ध किया था लेकिन जानकारी के अनुसार तब तक उन्हें मलिक का सम्मान प्राप्त नहीं हुआ था। आक्रमण के बाद ही उन्हें मलिक सम्मान से नवाजा गया।
पंवार जाट PAWAR JAT HISTORY
अगर हम ऋषिक तुषार जाटवंशों को गठवाला और मलिक पदकी मिलने के बारे में बात करें तो पता चलता है कि कुषाण गोत्र के एक महाराज ने कश्मीर में धर्म सम्मेलन का आयोजन किया। यही पर लल्ल ऋषि को संगठितवाला साधु की उपाधि देकर सम्मानित किया गया। इस लल्ल ऋषि ने ऋषिक तुषारों का एक मजबूत संगठन बनाया जो लल्ल ऋषि की उपाधि संगठित के नाम से एक गठवाला संघ कहलाने लगा। अपने महान नेता लल्ल के नाम पर ही यह जाटों का गण लल्ल गठवाला कहा जाने लगा। सम्राट कन्ष्कि ने गठवाला संघ को गढगजनी नगरी का राज्य सौंप दिया । इस तरह से अफगानिस्तान के इस क्षेत्र पर लल्ल राज्य की स्थापना हुई । जानकारी के अनुसार यहीं से इन्हें मलिक या फिर मालिक उपाधि धारण की । अफगानिस्तान में यह सबसे शक्तिशाली था जिसका दबदबा दूसरे राज्यों पर भी था। इसी कारण यहां के लोगों ने इन्हें मालिक मानना शुरू कर दिया और समय के साथ इन्होंने मलिक की उपाधि धारण कर ली । इस प्रकार से ये लोग लल्ल गठवाला मलिक कहलाने लगे।
आगे चलकर इस लल्लवंश के दो भाग हो गए एक का नाम सोमवाल पडा और दूसरा लल्ल गठवाला ही रहा । प्रतापगढ का राजा सोमवाल गठवाला हुआ है। सोमवाल गठवालों के 45 गांव है जिनमें 24 गांव जिला सहारनपुर व मुजफरनगर में और 21 गांव जिला मेरठ में है । इसके अलावा भी कुछ गांव जिला हरदोई में भी स्थापित है।
लल्ल गठवाला मलिकवंश ने गजनी पर आक्रमण कर उसे जीत लिया और ईस्वी दूसरी सदी के प्रारंभ से नवीं सदी के प्रारंभ तक लगभग 700 वर्ष तक शासन किया । लेकिन समय के साथ साथ मुसलमान शक्तिशाली होते गए और उन्होंने एक बार फिर से गजनी पर अधिकार कर लिया। हार के बाद जो लल्ल गठवाले वहां रह गए उन्होंने मुस्लिम धर्म स्वीकार कर लिया जबकि जो गजनी छोडकर भाग गए उनहोंने सरगोधा व भटिण्डा होते हुए जिला हिसार के हांसी पहुंच गए और वहां पर हांसी के आस पास अपना पंचायती राज्य स्थापित करके रहने लगे।
ऋषिक तुषारों का दल जब जेहलम और चनाब के द्वाबे में आकर बसा तो इधर तुषार भाषा भेद से त्रिशर और शर के शब्दार्थ वाण होने से ये लोग तिवाण और तिवाणा कहलाने लगे। तुषारों का एक दल द्वाबे के शाहपुर आदि स्थलों पर न बसकर सीधा इन्द्रप्रस्थ की ओर आ गया यहां इन्होंने विजय करके एक गांव बसाया जो आज विजवासन नाम से प्रसिद्ध है। यहां आज भी तुषार जाट बसे है। ये लोग यहीं से मेरठ में मवाना के समीप मारगपुर, तिगरी, शालतपुर, पिलौना और बिजनौर के छितावर गांवों में जाकर बस गय। हिन्दुओं में तिवाणा अभी भी जाटों में ही है। लेकिन इस वंश का वैभव मुसलमानों में ही देखा जाता है।
मान गोत्र का इतिहास MANN JAT HISTORY
जांटी गाँव सोनीपत से कुछ तुसार गोत्र के जाट सुनहेडा गाँव जिले बागपत में बस गये थे अब वो खुद को तावर (तंवर) कहते है वो मूल रूप से तुषार गोत्र के जाट है
Distribution in Delhi
Dasghara near Malcha and 11 Murti
Distribution in Haryana
Villages in Sonipat District
Nangal Kalan and Jhinjauli – Sonipat District. Janti Kalan or Janti Khurd may also have some families of Tushir gotra.
Villages in Baghpat district
Sunehra,
Chitawar (Meerut Distt.) Pilona (Meerut Distt catalunyafarm.com/.)
Notable persons
Mr. Suraj Narain Tushiar – Retd. Section Officer Railway, Sonipat, Haryana
राजेन्द्र सिंह तुसीर
रामकिशन तुसीर
कुलदीप सिंह तुसीर
. दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व अध्यक्ष रोकी तुसीर
मोहन तुसीर
बेनीवाल जाट का इतिहास BENIWAL JAT