जाट के कई गोत्रों में से सोलंकी गोत्र एक बहुत ही महत्वपूर्ण गोत्र है जिनका इतिहास बहुत ही प्राचीनतम रहा है यह सोलंकी एक उपनाम है जो कई जातियों में पाया जाता है जैसे कोली, गुर्जर भील, बंजार, राजपूत तथा जाट यहां जाट इतिहास की बात करें तो चौल से चालुक्य और बाद में यह शब्द राजाओं क्षेत्रों तथा भाषाओं के विभिन्नताओं के कारण चालुक्य और उसके पश्चात सोलंकी शब्द के रूप में भी उभर कर आया बाद में इन्हीं के वंश में एक राजा सौर हुए और इसलिए वहां के सोलंकी को सोहरौर कहा जाने लगा।
सोलंकी वंश का अधिकार पाटन तथा कटिहार राज्य तक विस्तृत था इतिहास उसे इस इस बात का प्रमाण प्राप्त होता है कि यह 9 वीं शताब्दी से १३वीं शताब्दी तक शासन करते रहे यह लोग मूलत अग्नि वंश ब्रत्य क्षत्रिय हैं और इतिहासकारों का मानना है कि यह दक्षिणा पंथ के हैं बाद में यह जैन मुनियों के प्रभाव से ये लोग जैन संप्रदाय से जुड़ गए।
पु़्न्ह सम्राट अशोकवर्धन मौर्य के काल में कान्यकुब्ज के ब्राह्मणों द्वारा इन्हें वैदिकों में सम्मिलित किया गया लगभग 700 ईसवी के आसपास इस वंश के शासक विभिन्न दिशाओं में चले गए। इसका प्रमाण हमें इसी इसी बात से प्राप्त होता है कि रूस के एक प्रांत याकुस्टक में एक शहर है जिसका नाम सोलंका है।
भारत के हिमाचल में सोलन नाम का एक शहर है सोवियत संघ रूस में सोलनिया नाम की एक नदी है।तुर्की में भी एक शहर है जिसका नाम सोलन है इस वंश का विस्तार एशिया तथा यूरोप तक था। परंतु बाद में ईसाई तथा मुस्लिम धर्म के राजाओं की शक्ति बढ़ने के साथ इसकी शक्ति घटने लगी और इससे यह यहां से पलायन कर अपने मूल देश भारत आते गए और यही रह गए।
रामस्वरूप जून लिखते हैं कि इतिहास के प्रमाणों के आधार पर यह कहना उचित है कि पहलवान तथा जून गोत्र सोलंकी गोत्र का ही वंशज है जिनका भारत के दक्षिण में वातामी अथवा बादामी राजधानी पर शासन पांचवी से बारहवीं शताब्दी तक रहा इस राजधानी पर इस वंश के 6 राजाओं ने शासन किया जिनमें से पुलकेशिन द्वितीय इस वंश के सर्वश्रेष्ठ शक्तिशाली सम्राट रहे।
चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपनी पुस्तक सी-यू -की में लिखा है कि यह बहुत ही प्रतापी सम्राट थे जिनके राज्य का विस्तार नर्मदा के दक्षिण, बंगाल की खाड़ी से अरब सागर तक तथा दक्षिण में पल्लव (जाट वंश )राज्य की सीमा कांची तक फैला हुआ था।
पुलकेशिन द्वितीय के राज्य काल में इनके राज्य के निवास निवासी बहुत ही आत्मविश्वास तथा युद्ध प्रिय थे उन्हें अपने राजा पर गर्व था पुलकेशिन द्वितीय का ऐसा प्रताप था कि विदेशों में भी उन्हें सम्मान प्राप्त था अजंता की गुफाओं में आज भी इस के चरित्र का चित्रण देखने को मिलता है।
पुलकेशिन के मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र विक्रमादित्य प्रथम सन् 642 ईसवी में राजगद्दी संभाली इसकी राजधानी का विस्तार कांची तक फैला था विक्रमादित्य ने दक्षिण में चोल पांड्य वंश, चीर वंश को भी जीत लिया था इसके पश्चात विक्रमादित्य द्वितीय जो विक्रमादित्य का पौत्र था यह भी अपने दादा की तरह बड़ा ही पराक्रमी और वह वीर योद्धा था परंतु इसकी मृत्यु के पश्चात यह वंश कमजोर होता चला गया।
विक्रमादित्य द्वितीय की मृत्यु के पश्चात या वंश पहले की भांति शक्तिशाली नहीं रही जो भी राजा आए दुर्बल थे इस वंश का अंतिम राजा कीर्ति वर्मन द्वितीय था जिसे सन 753 ईसवी में राष्ट्रकूट वंश के राजा वंतीदुर्ग ने हरा दिया तथा राज्य छीन लिया।
फिर पुनः 754 ईसवी से 972 ईसवी तक लगभग 200 वर्षों तक इस अहलवात जाट वंश का शासन नगण्य ही रहा।
सन 973 से 1190 इसवी तक इस जाट वंश के कई पराक्रमी राजा का उत्थान हुआ जिनमें से कुछ प्रमुख है
973 ईसवी में तल्प द्वितीय ने राष्ट्रकूट के राजा कम्क को पराजित कर इसके कल्याणी राजधानी पर सोलंकी वंश का राज्य स्थापित कर लिया।
इसके पश्चात इस वंश का एक महत्वपूर्ण राजा राजा जयसिंह द्वितीय जिसने जैन धर्म को त्याग कर शिवमत धर्म धारण कर लिया और कल्याणी नगर की पुनः स्थापना की और इसे राजधानी बनाया।
इस कल्याणी साम्राज्य के सोलंकी शासकों में विक्रमादित्य षष्ठ बहुत ही प्रतापी सम्राट रहे जिसने मैसूर के होयसल तथा चोल वंश के शासक राजेंद्र द्वितीय को पराजित कर मैसूर पर अधिपत्य स्थापित कर ली
विक्रमादित्य षष्ठ के पश्चात इस वंश के एक-एक कर सभी राजा दुर्बल होते चले गए तथा अंतिम राजा सर्वेश्वर था।
कल्याण सोलंकी जाट वंश के राजा सर्वेश्वर को 1190 इसवी में औरंगाबाद प्रदेश के यादव वंश के शासक ने हरा दिया और अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया इस तरह कल्याणी के सोलंकी वंश का शासन यहीं समाप्त हो गया।
इस प्रकार इस वंश के शासक बहुत ही पराक्रमी वीर तथा युद्ध प्रिय राजा रहे जिन्होंने दक्षिण में अपने सम्मान व गौरव को बनाए रखा
सोलंकी वंश के राजा की वीरता इसी बात से प्रमाणित होती है इन्होंने हर्षवर्धन जैसे शक्तिशाली भी राजा को पराजित कर अपना शासन विस्तार किया।
औरंगाबाद की प्रसिद्ध गुफा अजंता तथा लौड़ा पर की गई चित्रकारी अधिकांशत इन्हीं के शासनकाल में की गई थी इसके अलावा उन्होंने कई मंदिर भी बनवाई उदाहरण स्वरूप बादामी में विष्णु तथा भीगोती में शिव मंदिर इत्यादि।
दलहन तथा विज्ञानेश्वर जैसे महान विद्वान इसी कल्याणी सोलंकी जाट वंश के राज्यों के में दरबार में थे।
इस वंश के राजा बहुत ही वीर युद्ध प्रिय तथा न्याय प्रिय राजा हुए जिनके राज्य में उनकी प्रजा बहुत ही निडरता तथा संतोष के साथ रहती थी उन्हें अपने राजा के प्रशासन पर पूर्ण विश्वास तथा गर्व था।
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान इस जाट वंश के लोग जेल गए तथा बहुत ही वीरता के साथ भारतवर्ष को आजाद करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाया।
महत्वपूर्ण व्यक्तित्व की बात करें तो इस सोलंकी जाट वंश के ऐसे बहुत ही दिग्गज तथा महान पुरुष हुए हैं जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपनी अहम भूमिका निभाई तथा आज भी अपने महत्त्वपूर्ण योगदान से समाज उत्थान में सहयोग देकर पूरे जाट वंश को गौरवान्वित कर रहे हैं।
१. चौधरी फूल सिंह सोलंकी—-यह अंग्रेज सरकार के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेकर भारत की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
२. चंपावती—-यह फतेहपुर सीकरी की विधायक रहे साथी स्वतंत्रता संग्राम में भी इन्होंने हिस्सा लिया यह चौधरी फूल सिंह की बहन थी
३. मेजर जनरल डॉ कर्ण सिंह सोलंकी
४. चौधरी रामकरण सोलंकी—-स्वर्गीय रामकरण चौधरी हमेशा सामाजिक कार्यों के लिए तत्पर रहते थे या दिल्ली 360 गांव के पूर्व अध्यक्ष रहे इनके पुत्र सुरेंद्र सोलंकी को पालम 12 की पंचायत में 360 का नया अध्यक्ष मनोनीत किया गया है।
५. धरम देव सोलंकी—-यह पालम से एमएलए रहे हैं
६. सतेन्द्र सोलंकी—- बारनवा विधानसभा से एमएलए रहे
७. गुरुदत्त सोलंकी—-यह चौधरी चरण सिंह के दामाद है तथा उत्तर प्रदेश से एमएलए के पद के लिए चुने गए हैैं।
८. एमएस सोलंकी—- मध्य प्रदेश में इनका जन्म 12-8 1927 में हुआ यह आई एफ एस के पद पर आसीन थे
१०. डीएस सोलंकी—-मध्य प्रदेश के गोपालगढ़ भरतपुर के रहने वाले थे । एक दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई
१२. राजन सोलंकी—-यह उत्तर प्रदेश के रहने के रहने वाले हैं यह आईआरएस पद पर आसीन हैं
१३. बलराम सोलंकी—-यह हिमाचल प्रदेश सरकार में फोरेनर एडवाइजर है।
१४. पुष्पेंद्र सोलंकी
१५. सोहन सिंह सोलंकी यह 25 जुलाई 1974 में राजस्थान के करौली में इनका जन्म हुआ था और 1994 में भारतीय सेना के पद पर भर्ती हुए परंतु 6 अगस्त 1999 को आतंकवादि मुठभेड़ में शहीद हो गए।
इनके विस्तार की चर्चा करें तो इनका विस्तार दिल्ली मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश हरियाणा राजस्थान में मुख्य रूप से है
दिल्ली
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दिल्ली में इनका विस्तार पालम, नसीरपुर, डाबरी, सुरखपुर,मतैला,असलतपुर खादर, बपरोला, बागडोला शहबाद मोहम्मदपुर, पुथ कलान इत्यादि में देखा जा सकता है।
मध्य प्रदेश
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१.भोपाल जिला के बेरगड़, भोपाल, कोलर भोपाल मैं इसका विस्तार देखा जा सकता है।
२. खरगोन जिला के खरगोन में इसका विस्तार देखा जा सकता है।
३. मुरैना जिला के अंबाह में इसका विस्तार हम देख सकते हैं।
४. ग्वालियर ग्वालियर जिले के लश्कर नाम के जगह में इसका वविस्तार है।
उत्तर प्रदेश
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उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में सोलंकी वंश के 38 गांव बसे हैं।
१.आगरा जिला जिले में 40 गांव सोलंकी जाट वंश के हैं।
२. उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में जीवना गुलियन नाम के गांव में इसका विस्तार देखा जा सकता है।
३. अलीगढ़ जिले के पुरानी इस्माइलपुर, बाबूपुर, गाजीपुर अलीगढ़ इत्यादि
राजस्थान
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१. राजस्थान के जयपुर शहर में इसका विस्तार हम इस प्रकार देख सकते हैं—-
अमेर, गांधीनगर, इमलीवाला फाटक, जेपी कॉलोनी, लालकोठी, महावीर नगर, महेश नगर, मालवीय नगर, मानसरोवर कॉलोनी।
२. भरतपुर जिला—-बच्चामंडी, बेधाम, भरतपुर,गोपालगढ़, कसोट, नडबै, नागला गोपाल, पूरवै खेरा,सुरौता
३. हनुमानगढ़ जिला—-संगरिया
४. सिवाय मोहम्मदपुर जिला—शेखपुर
५. करौली जिला—–माहू जलालपुर, महू
हरियाण
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१.रोहतक जिला—बलीना
२.झज्जर जिला—-सूच्चवास, खुरद्यै,अच्हेज
३. फरीदाबाद जिला—-शाहपुर खुर्द, पियाला।
४. पलवान जिला—-कनोली