नमस्कार दोस्तों, जैसा की आप सभी जानते हैं कि जाटों ने भारत के इतिहास में अपनी एक अलग ही पहचान बनाई है। और हम आप लोगों के कहने पर उन जाट गौत्रों के बारे में बातते हैं जो गौत्रों के नाम आप हमें काॅमेंट में लिखते हो । ऐसे ही हमारे पास काॅमेंट बाॅक्स में कुछ गौत्रों के नाम आए उनमें से एक घणघस ;गंगरिदीद्ध जाट क्षत्रिय आर्य गोत्र है। इस गोत्र को गंगस, गणगस, गंघस, घोघस, घनगस, घणघस, घणगस, घंगस, घंघस, घणघस,घंगस,खंगस, खंगास गंगरिदी,गंगरिदी, घनघट आदि नामों से भी जाना जाता है
चलिए आपको बताते है इस गौत्र का इतिहास
- इस गौत्र का इतिहास जाट प्राचीन शासक के लेखक बी.एस. दहिया इस घणघस गोत्र के बारे में लिखते हैं वास्तव में असाधारण नाम है किन्तु भाग्यवश प्रिस्कस ने श्वेत हुणों के एक राजा कोंगखस का उल्लेख किया है कि जिसने 356 ई. में अपने आपको सोग्दियाना का अधिपति बनाया और जिसके गोत्र भाईयों ने 374/375 ई. में जर्मन फ्रेज अल्थीम के अनुसार डान नदी को पार किया। यह राजा कंगखस निश्चित रूप से खन्गज ;घनघसद्ध जाट था। कहा जाता है कि कंगखस सिकन्दर का पुत्र था जो कि गलत है। पुत्र का गोत्र पिता के गोत्र से भिन्न नहीं है। जब तक कि दोनों पिता पुत्र अलग-अलग गोत्रों के निर्माता न हों। ईरान के सास्सानी सम्राट पिरोज ने अपनी बहिन का विवाह कंगखस से करने का वचन दिया था लेकिन उसने अपने वचन को नहीं निभाया जिसका परिणाम यु( के रूप में निकला, इस यु( में ईरानियों की पूरी तरह से पराजय हुई। पिरोज को बन्दी बना लिया गया तथा उसको तभी मुक्त किया गया जब उसके बेटे कबध को उसके स्थान पर बन्धक बनाया गया तथा खिराज ;राज्य द्वारा लिए जाने वाला करद्ध के रूप में एक बहुत बड़ी रकम स्वर्ण मुद्राओं की राशि के रूप में देनी पड़ी। कंगघस ने खिराज में दिए गए सिक्कों को पुनः अपने नाम से जारी किया। अन्य वस्तुओं के साथ ये सिक्के भी चैथी शताब्दी में खंगस सम्राट् पर प्रकाश डालते हैं। गंगरिदी ;घणघसद्ध ये मैगस्थनीज के समय में भी जाति रूप में थे। लेकिन इस जाति का नाम इसाई जाति के साथ आने से, किसी ने इसे महानदी के किनारे और किसी ने कलिंग देश में होने की बात कही है। लेकिन यह गढ़मुक्तेश्वर के कहीं पास रहती थी गढ़मुक्तेश्वर भी एक जाट राजा के नाम पर प्रसि( हुआ है। लेकिन कल्पना के विमान पर चढ़कर लोग इधर उधर भटकते फिरे हैं इतिहासकारों का कहना है कि यदि उन्हें गंगसों ;घनगसोंद्ध का पता होता तो वह ठीक नतीजे पर पहुंच जाते। टोलेमी ने उनकी राजधानी गंगा तथा गढ़मुक्तेश्वर लिखी है। इसलिए यह मानना पड़ता है कि आज जो रामघाट के पास गंगाघाट नाम का शहर है वही उनकी राजधानी रहा होगा। जाट उत्पत्ति के लेखक बेनीप्रसाद ने गंगस ;घनघसद्ध लोगों की आबादी बुलन्दशहर जिले में वर्तमान में बताई जाती है। भाषा भेद से इन्हें मंगरिदी गंगस, घनघस आदि कहते हैं। ये पनघस जाट अब पंजाब और हरियाणा में मिलते हैं।
-ट्राईब्स एण्ड काॅस्टस् में इन्हें खुन्गस, घन्गस/खन्गस कहा गया है। इतिहासकारों ने लिखा है कि गढ़मुक्तेश्वर के पास गंगा के किनारे रहने वाले गंगस घनघस कहलाए। - वहीं चौ. धर्मपाल जोकि जींद क्षेत्र से है उन्होंने बताया कि जितने भी घणघस गौत्र के गांव दिखाई देते हैं, सभी का निकास धनाना गांव से समझा जाता है। किंवदन्ती ;अर्थात पूर्वजों से सुनते आ रहे है द्धके अनुसार हमारा बुजुर्ग एक अपनी ससुराल में गया हुआ था। उसने वहाँ कहीं आस पास लकड़ी काटने का ठेका ले रखा था अथवा यह लकड़ी काट रहा था या कटवा रहा था तो लकड़ी काटने का कुल्हाड़ा टूट गया। वह पास में स्थित अपनी ससुराल में दूसरा कुल्हाड़ा लेने चला गया। उसकी सालियों ने उसे कुल्हाड़े की जगह घण दे दिया। उसने उसी घण से ही कीकर का पेड़ काट दिया तब से हम घणघस कहलाने लगे।
एक अन्य किंवदन्ती के अनुसार कहावत प्रचलित है जो इस घणघस गोत्र की बहादुरी को प्रकट करती है तथा पहले मिलनी न करने का भी कारण समझती है) जिसे जोगी आज भी गाते हैं। यथा
कुरड़ी टाम बजाता गज्र्या हरियाणा
डाटे की फोड़ी डाटसी, गज करा गुराणा।
हीरां की तोड़ी कोसली, कांपा हरियाणा।
बपौड़ा ना जानिये यू सै गाम धनाना।।
अपनी बोई आप खा और न दे दाना।।
घणघस गोत्र के गांव रू-1. सुलेहड़ा (जीन्द), 2. तालु धनाना (भिवानी), 3. हसनगढ़ (हिसार) 4.मांडी, बांध, पुठर, सेखपुरा (पानीपत), 5.भंभेवा (सोनीपत) 6.सरधना के आसपास (यूपी) आदि इन गांवों में इस गोत्र के लोग मिलते हैं।
घणघस गोत्र के समाजसेवी
- चौ . प्रहलाद सिंह घनघस डी.पी.ई. जाट कालेज, हिसार
- 2. स्व. चै. गुरदयाल घनघस पंचायती व्यक्ति गांव मुलेहरा (जीन्द), निवासी थे जिनके सुपुत्र हैं हरफूल मानसा, रूपला और जुगलाल तथा भाना।
- श्री नरेन्द्र कुमार घनघस सरपंच पुत्र श्री रामकिशन घनघस, गांव-2-ई (छोटी) गंगानगर श्री गंगानगर ;राजस्थानद, राजस्थान क्षेत्र के गांवों में ये युवक सबसे कम आयु के सरपंच निर्वाचित हुए हैं।
- प्राध्यापक श्री विजय सिंह घनघस जाट व्याख्याता राजकीय महाविद्यालय सवाई माधोपुर (राजस्थान)
- श्री वीर सिंह धनघस, पुरानी आबादी श्री गंगानगर
- श्री एडवोकेट मांडी जिला पानीपत,
- चौ , धर्मपाल घणघस ई.टी.ओ. धनाना, भिवानी आदि इस गोत्र के समाजसेवी जन है।
आधार स्रोत
- जाट प्राचीन शासक लेखक बी. एस. दहिया
- जाट इतिहास समकालीन सन्दर्भ प्रताप सिंह शास्त्री एम. ए.
3.चौ . धर्मपाल घणघस एक्साईज टैक्सेशन विभाग हरियाणा (जीन्द क्षेत्र)