जाटाें की शान बजरंग पुनिया
बजरंग पुनिया की अगर शिक्षा की बात करें तो उन्होंने महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी से अपना ग्रेजुएशन पूरा किया।
बजरंग पुनिया ने भारतीय रेलवे में टिकट चेकर का भी काम किया है।
बजरंग पुनिया ने सात वर्ष की उम्र से ही कुश्ती खेलना शुरू कर दिया था। लेकिन झज्जर में कुश्ती के लिए ज्यादा सुविधाएं ना होने के कारण उनका परिवार सोनीपत में स्थानांतरित हो गया। लेकिन जब बजरंग कुछ अच्छा खेलने लगे तो वो दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में कुश्ती का प्रशिक्षण लेने के लिए आ गए।
बजरंग पुनिया ने टोक्यो ओलंपिक 2020 के लिए क्वालिफाई कर लिया है।
सम्मान
अर्जुन पुरस्कार 2015
राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार 2019
पद्म श्री पुरस्कार 2019
बजरंग की कुछ उपलब्धियां
2013 एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप- बजरंग ने नई दिल्ली में 60 किलोग्राम भार वर्ग में कांस्य पदक जीता।
2013 विश्व कुश्ती चैंपियनशिप- बजरंग ने हंगरी के बुडापेस्ट में 60 किलोग्राम वर्ग में कांस्य पदक जीता।
2014 राष्ट्रमंडल चैंपियनशिप- स्कॉटलैंड के ग्लासगो में 61 किलोग्राम भार वर्ग में बजरंग ने रजत पदक जीता।
2014 एशियाई खेल- दक्षिण कोरिया के इंचियोन में बजरंग ने 61 किलोग्राम भार वर्ग में रजत पदक अर्जित किया।
2014 एशियन रेसलिंग चैम्पियनशिप- कजाकिस्तान के अस्ताना में 61 किलोग्राम भार वर्ग में बजरंग ने रजत पदक अर्जित किया।
2017 एशियन रेसलिंग चैंपियनशिप- बजरंग ने नई दिल्ली में 60 किलोग्राम भार वर्ग में स्वर्ण पदक जीता।
2018 राष्ट्रमंडल चैंपियनशिप- बजरंग ने गोल्ड कोस्ट, ऑस्ट्रेलिया में 65 किलोग्राम भार वर्ग में स्वर्ण पदक जीता।
2018 एशियाई खेल- बजरंग ने इंडोनेशिया के जकार्ता में एशियाई खेलों में 65 किग्रा भार वर्ग में जापान के तकाताई को हराकर स्वर्ण पदक जीता ।
2018 विश्व कुश्ती चैम्पियनशिप- बुडापेस्ट में बजरंग को फाइनल में जापानी मल्ल ताकोतो ओटुगारो से 6-9 से हारना पड़ा । उसके साथ ही बजरंग ने रजत पदक हासिल किया । पहली बार विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में दो पदक जीतनेवाला पहला भारतीय पहलवान बन गया।
बजरंग पुनिया के बारे में खास बातें
–बजरंग के पिता के पास अपने बेटे को घी खिलाने के पैसे नहीं होते थे। इसके लिए वे बस का किराया बचाकर साइकिल से चलने लगे थे।
– चर्चा है कि बजरंग पुनिया, संगीता फौगाट से शादी करेंगे।
– बजरंग पुनिया 65 वर्ग किलोग्राम वेट में फाईट करते है।
जब बजरंग पुनिया ने पहली बार कुश्ती लडकी तो सभी को चौंका दिया था।
कुश्तियां चल ही रही थीं कि तभी करीब 14 साल का एक लड़का आयोजकों की मेज के पास आया. उसने अपनी कमज़ोर माली हालत का जिक्र करते हुए गुज़ारिश की कि उसे पैसों की सख्त ज़रूरत है, तो उसे एक कुश्ती लड़ लेने दी जाए. बच्चा था तो मज़बूत ढांचे का, फिर भी कार्यक्रम के आयोजकों ने उसे बच्चा समझकर टाल दिया. सोचा होगा कहीं हाथ-पैर मुड़ गया, तो कौन संभालेगा. पर बच्चा नहीं माना. लगा रहा. आखिरकार आयोजकों ने अपना पिंड छुड़ाने के लिए बच्चे से कह दिया कि सामने खड़े पहलवानों में से किसी को चुन ले और उसके साथ लड़ ले.
सामने खड़े पहलवानों की तुलना आपस में हो सकती थी, पर कोई इतना भी कमज़ोर नहीं था कि उसे एक बच्चे के सामने उतार दिया जाए. आखिरकार बच्चे ने एक पहलवान चुन लिया. अपने से डेढ़ गुनी उम्र और डेढ़ गुने वजन का पहलवान. खिलाड़ी तय हुए और भोंपू पर कुश्ती का ऐलान कर दिया. इधर लोगों का फुसफुसाना शुरू हो गया। ‘दो मिनट में बाहर फेंक देगाÓ ‘ देख रहे हो सामने वाले को कहीं जान से न मार देÓ इसी फुसफुसाहट के बीच कुश्ती शुरू हो गई.
लेकिन ये क्या ये बच्चा तो पहलवान की पकड़ में ही नहीं आ रहा है. कभी कंधे पर चढ़ जा रहा है, कभी सिर पर चढ़ जा रहा है, कभी पैरों के बीच से निकल जा रहा है. ये चौराहे पर सींग में सींग फंसाए दो सांड़ों की लड़ाई नहीं थी, लेकिन वो बच्चा पहलवान को जैसे छका रहा था, उसमें सभी को आनंद आ रहा था. कुश्ती शुरू हुए पांच मिनट भी नहीं बीते होंगे कि उस बच्चे के नाम के नारे लगने लगे. और अगले पांच मिनट के अंदर वो अपने से डेढ़ गुने पहलवान पर ऐसा हावी हुआ कि उसे जांघों से उखाड़कर मिट्टी पर पटक दिया. उसकी जीत से लोग इतना खुश हुए कि कुछ ही देर में उसकी चादर दस, बीस, पचास के नोटों से भर गई. सब एक ही नाम जप रहे थे। बजरंग बजरंग बजरंग