Bhati jat भाटी जाट जानिये कैसे बने और इनका इतिहास क्या है
भाटी गोत्र अन्य जातियों में भी मिलता है कैसे बना यह और वहां कैसे पहुंचा पढिये
भाटी जाट Bhati jat गोत्र के रूप में जाना जाता है। राजपूत और गुर्जर में भी भाटी गोत्रBhati jat के लोग मिलते है। भाटी गोत्र के लोग पंजाब और उत्तर प्रदेश में प्रमुख रूप से निवास करते है। एक इतिहासकार के अनुसार 70 जाट गोत्र के लोग गुर्जर जाति में चले गए जिसके बाद वे अपने को गुर्जर कहने लगे। भाटी Bhati jat भी उनमें से ऐसा ही एक गोत्र है।
कुछ भाटी जाट किसी कारण से गुर्जर जाति में चले गए जिसके बाद वे अपने को गुर्जर भाटी कहने लगे। जबकि कुछ लोग जाट जाति में ही बने रहे जिससे वे जाट भाटी Bhati jat के नाम से जाने गए। इस गोत्र के प्रचलन में एक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार मथुरा के यदुवंशी राजा जयसिंह के युद्ध में शहीद हो जाने के बाद उनके दूसरे लडके ने देवी के नाम पर भट्टी में सिर चढा दिया तभी से भट्टी कहलाने लगे लेकिन यह एक बढा चढाकर बताई गई कहानी मात्र है। इसके अलावा कुछ नहीं ।
लेकिन अगर इसका दूसरा अर्थ ले तो यह कहावत कुछ सही प्रतीत होती है जिसके अनुसार गर्मी के महीनों में इनके यहां इतनी लू चलती है जितनी भारत के किसी दूसरे कोने में शायद ही चलती होगी।
खर्ब जाट KHARAB JAT गोत्र का इतिहास
सुबह आठ बजे से शाम के पांच बजे तक आसमान धूल से ढक जाता है। कुछ दूरी का भी मनुष्य दिखाई नहीं देता। बालू में से अग्नि किरणें उठती दिखाई देती हैं। एक तरह से उस समय यह सारा प्रदेश एक जलती भट्टी होता है। यदि भाटों ने इसी को अलंकार मय भाषा में देवी की भट्टी कहा हो तो यह कहावत सच्च दिखाई देती हैं। पानी का जहां प्राय सदैव अकाल रहता है । ऐसे प्रांत का बातभय नाम होना ही चाहिए । इसी बात भय शब्द से बातियाना भतियाना और भटियाना नाम पड गया और जो लोग यहां आबाद हो गए उन्हें भाटी कहा Bhati jat जाने लगा।
हकीकत में भटंड भूमि में यादवों के बस जाने से ही भाटी नाम प्रसिद्ध हुआ। भटनेर बसाने वाले भाटी लोग प्राचीन सामाजिक व राजनैतिक नियमों पर चलने के कारण जाट भाटी कहलाते रहे और जैसलमेर के भाटी नवीन हिन्दू धर्म की दीक्षा से दीक्षित होकर राजपूत भाटी हो गए। भटनेर के जाट भाटियों ने ही भटिण्डा नगर की नींव डाली थी।
जानकारी के अनुसार भाटी लोगों के पास पंजाब में पटियाला और नाथा जैसी रियासते थी। जबकि राजस्थान के जैसलमेर की रियासत राजपूत भाटियों के पास थी।
फौगाट जाट गौत्र इतिहास PHOGAT JAT HISTORY
जानकारी के अनुसार ये लोग आरंभ के यादव हैं । ब्रज और फिर गजनी हिरात तथा पंजाब जैसी उपजाऊ भूमि से प्रताडित होकर यह समूह जांगल प्रदेश में रहने लगा। जांगल प्रदेश में उस समय ना तो अन्न पैदा होता था और ना ही पानी की उचित व्यवस्था थी। जिसके कारण यहां के लोगों को पानी और भोजन के लिए दूर दूर तक भटकना पड़ता था। जिस कारण दूसरे लोगों ने इन्हें भाटी नाम से पुकारना शुरू कर दिया। भरतपुर और करोली के यादवों के लिए यह बिल्कुल गैर उपजाऊ जगह में बसे हुए लोग थे। जिस कारण इन्हें जांगल प्रदेश के यादव भाटी नाम से पुकारा जाने लगा।
जानकारी के अनुसार ये लोग तीसरी और चौथी सदी से पूर्व ही इस जगह पर आ चुके थे।
बौद्ध-धर्म के पश्चात् जब नवीन हिन्दू-धर्म बढऩे लगा तो इस समुदाय के दो टुकड़े हो गये-एक जाट भट्टी, दूसरे राजपूत भट्टी। लेकिन जब भारत में इस्लाम ने प्रवेश किया और अपने पैर पसारने शुरू किए तो भाटी दो की जगह तीन हिस्सों में बंट गया कुछ लोगों ने मुस्लिम धर्म स्वीकार कर लिया जिसके बाद तीसरे दल को मुसलमान भट्टी कहा जाने लगा।
मलिक जाट गोत्र MALIK JAT GOUTRA
पंजाब में वितरण
भाटी जाट गाँव सहलोन, रामपुर, घुरियाल (जालंधर), रेहला, फुगलाना, सलहा, दरौली, माछली कलां, लालरू, झवांसा, तर्डक, जोली, रोली, रामपुर, समगोली नगला, झांझरी, छोलता, बादली, रंगियन, मगरा में पाए जाते हैं। गुन्नू भट्टियन, सहारन च_ा, किल्लन-मल्लन, किलियांवाली
जालंधर जिले के गांव गुरिया
लुधियाना जिले में हरिओन कलां, सरमाला, टपरिया गांव
नवांशहर जिले में मल्लेवल भाटियान, सहलोन, रामपुर, रेहला गाँव
पटियाला और अमृतसर में भी भट्टी जाटों की कुछ आबादी मिलती है।
संगरूर जिले में भटियन कलां, भटियन खुर्द, सुल्लर घरत गांव के नाम लिये जाते है ।
राजस्थान में वितरण
अलवर जिले में घाट लछमनगढ़, खेरली वीरन, महलाकपुर, रोनपुर गांव
जम्मू और कासमीर में जडिय़ा, साईं कलां गांव के नाम आते है।
राठी जाट RATHI JAT
पाकिस्तान के मुल्तान में इस गोत्र के कुछ लोग मिलते है।
उल्लेखनीय व्यक्ति
राजा भट्टी या भट्टी राजा,
दुल्ला भट्टी – पिंडी भट्टियन के राजा
नारायण सिंह भाटी