वीर तेजाजी महाराज की पूरी कथा
जाट जागरण। जाट समाज का इतिहास बहुत पुराना है। अगर हम जाटों के इतिहास पर नजर डाले तो पता चलता है कि हजारों और लाखों ऐसे जाट पुरूष पैदा हुए जिन्होंने समाज को एक नई दिशा दी। कुछ को भगवान के रूप में देखा गया। आज हम आपको एक ऐसे ही जाट योद्धा के बारे में बताते है जिनको राजस्थान के लोग देवता के रूप में पूजते है। जी हां हम बात कर रहें है वीर तेजाजी की।
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वीर तेजाजी का जन्म नागवंशी जाट घराने में हुआ था। माना जाता है कि वीर तेजाजी शिव के ग्यारहवें अवतार है। अगर हम राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के जाटों के देवताओं की बात करें तो उसमें वीर तेजाजी का काफी महत्वपूर्ण स्थान आता है। आपको बता दें कि वीर तेजाजी का जन्म विक्रम संवत 1130 माघ सुदी चौदस के दिन खरनाल गांव में हुआ था। जानकारी के अनुसार तेजाजी के पिता ताहड़जी नागौर जिले के खरनाल के मुखिया थे। जबकि उनकी माताजी का नाम राम कंवरी था। तेजाजी के माता पिता शिव के भक्त थे। तेजाजी का जन्म भी नाग देवता की पूजा अर्चना के बाद हुआ था।
जानकारी के अनुसार तेजाजी का विवाह पेमल से हुआ। पेमल झांझर गोत्र के राय मल जाट की पुत्री थी। वह भी काफी प्रतिष्ठित परिवार से तालुक रखती थी। उनके पिताजी पनेर गांव के प्रमुख थे। तेजाजी का जब विवाह हुआ तो उनकी उम्र केवल 9 महीने की थी जबकि पेमल की उम्र 6 महीने की थी।
किन्तु शादी के कुछ ही समय बाद उनके पिता और पेमल के मामा में किसी बात को लेकर आपस में कहासुनी हो गयी। बात इतनी बढ़ गई की कहासुनी के दौरान दोनों पक्षों में तलवार तक चल गई। लड़ाई के दौरान तलवार लगने के कारण पेमल के मामा की मौत हो गई। इस कारण दोनों परिवारों में आपस में फूट पड़ गई। बचपन में शादी होने के कारण तेजाजी को कुछ मालूम नहीं था और ना ही परिवार के किसी व्यक्ति ने उन्हें शादी के बारे में बताया था। लेकिन एक बार उनकी भाभी ने किसी बात को लेकर उन पर पत्नी के लेकर ताना मारा जिसके बाद तेजाजी को अपनी शादी की बात मालूम हो गई। जिसके बाद वे अपनी पत्नी पेमल को लेने के लिए घोड़ी ‘लीलण’ पर सवार होकर अपने ससुराल पनेर गए। लेकिन ससुराल के पक्ष भी उन्हें नहीं जानते थे जिसके कारण उन्होंने उनकी अवज्ञा कर दी जिसके बाद तेजाजी नाराज होकर वहां से वापस लौट पड़े। लेकिन रास्ते में पेमल से उनकी भेंट हो गई। लेकिन दुर्भाग्य से उसी दिन मेर के मीणा लोग लाछा गूजरी की गाय चुरा कर ले गए।
तेजाजी एक प्रसिद्ध गौभक्त थे। उन्हें यह बात सहन नहीं हुई और वे गाय को वापस लेने के लिए वहां से चल दिए। लेकिन जाते समय उन्होंने देखा कि रास्ते में एक सांप आग में चल रहा है। उन्होंने सांप को आग से बचाया लेकिन वह सांप जोड़े में था जिसके कारण दूसरे सांप ने सोचा कि तेजाजी ने उनके साथी सांप को जला दिया है जिसके कारण सांप उनकी और डंसने के लिए चल पड़ा लेकिन तेजाजी ने सांप को रोक कर उन्हें बताया कि वह गाय को बचाने के लिए जा रहें है जिसके कारण उन्हें जाने दे। लेकिन उन्होंने वचन दिया कि वह गाय को लेकर वापस आएंगे तो सांप उसे डस कर अपना क्रोध शांत कर सकता है।
गाय को छुड़ाने के लिए तेजाजी को उनके साथ युद्ध करना पड़ा जिसमें वे काफी घायल हो गए। लेकिन तेजाजी ने अपना वचन निभाया और गाय को वापस छोड़ कर सांप के पास वापस गए ताकि वे अपना वचन पूरा कर सकें। लड़ाई के दौरान तेजाजी के शरीर पर इतने घाव थे कि सांप को कहीं काटने की जगह नहीं मिली जिसके पश्चात तेजाजी ने अपनी जीभ मुख से बाहर निकालकर सांप से कटवाया।
किशनगढ़ के पास सुरसरा में सर्पदंश से उनकी मृत्यु भाद्रपद शुक्ल 10 संवत 1160 (28 अगस्त 1103) को हो गई तथा उनकी पत्नी पेमल भी उनके साथ सती हो गई। तेजाजी की वचनबद्धता देखकर साँप ने उन्हें वरदान दिया। इसी वरदान के कारण तेजाजी भी साँपों के देवता के रूप में पूज्य हुए। गाँव-गाँव में तेजाजी के देवरे या थान में उनकी तलवारधारी अश्वारोही मूर्ति के साथ नाग देवता की मूर्ति भी होती है। इन देवरो में साँप के काटने पर जहर चूस कर निकाला जाता है तथा तेजाजी की तांत बाँधी जाती है। तेजाजी के निर्वाण दिवस भाद्रपद शुक्ल दशमी को प्रतिवर्ष तेजादशमी के रूप में मनाया जाता है।
अगर हम तेजाजी के समाज सुधार के कार्यों के बारे में देखे तो पता चलता है कि बचपन में ही उनके साहसिक कारनामों से लोग आश्चर्यचकित रह जाते थे. कुंवर तेजपाल बड़े हुए. उनके चेहरे की आभा चमकने लगी. वे राज-काज से दूर रहते थे. वे गौसेवा में लीन रहते थे. उन्होंने कृषकों को कृषि की नई विधियां बताई. पहले जो बीज उछाल कर खेत जोता जाता था, उस बीज को जमीन में हल द्वारा ऊर कर बोना सिखाया. फसल को कतार में बोना सिखाया. इसलिए कुंवर तेजपाल को कृषि वैज्ञानिक कहा जाता है. गौसेवा व खेतों में हल जोतने में विशेष रुचि रखते थे. तेजाजी ने ग्यारवीं शदी में गायों की डाकुओं से रक्षा करने में कई बार अपने प्राण दांव पर लगा दिये थे. तेजाजी सत्यवादी और दिये हुये वचन पर अटल रहते थे. उन्होंने अपने आत्म-बलिदान तथा सदाचारी जीवन से अमरत्व प्राप्त किया था. उन्होंने अपने धार्मिक विचारों से जनसाधारण को सद्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया और जनसेवा के कारण निष्ठा अर्जित की. जात – पांत की बुराइयों पर रोक लगाई. शुद्रों को मंदिरों में प्रवेश दिलाया. पुरोहितों के आडंबरों का विरोध किया. इसीलिए तेजाजी के मंदिरों में निम्न वर्गों के लोग पुजारी का काम करते हैं. समाज सुधार का इतना पुराना कोई और उदाहरण नहीं है. उन्होंने जनसाधारण के हृदय में हिन्दू धर्म के प्रति लुप्त विश्वास को पुन: जागृत किया. इस प्रकार तेजाजी ने अपने सद्कार्यों एवं प्रवचनों से जन – साधारण में नवचेतना जागृत की, जिससे लोगों की जात – पांत में आस्था कम हो गई.