जाट गोत्र में कुछ गोत्र ऐसे है जो ज्यादा प्रसिद्ध नहीं है लेकिन ये जाट गोत्र में गिने जाते है। आपको बता दें कि जाट कोई जाति नहीं बल्कि एक नस्ल है। और इस नस्ल के लोग आपको पूरी दुनिया में मिल जाएगे। इसके साथ ही साथ जाट ही एक ऐसी नस्ल है जिसके लोग आपको सभी प्रमुख धर्मों में मिल जाएंगे। समय के साथ गोत्र बढते गए और आज कई हजार गोत्र जाटों के है। ऐसे ही एक गोत्र के बारे में आज हम चर्चा करने आए है। यह गोत्र है कासनियां गोत्र। कोई कोई इस गोत्र को काश्यप भी बोलता है तो कोई कृष्णीयां या कहीं कहीं इसे काशीवत जाट भी बोला जाता है लेकिन कुल मिलाकर अगर देखा जाए तो ये सभी नाम कासनिया जाट गोत्र के ही मिलते है। अगर हम इसके इतिहास पर नजर दौड़ाए तो हमें पता चलता है कि कासनियां, काश्यप, कृष्णीयां काशीवत जाट गोत्र काशी कबीले से निकले हुए गोत्र हैं। इनका उद्भव काशी कबीला है। आज से लगभग 10 हजार वर्ष पहले कैस्पियन सागर के तट पर तीन कबीले आबाद थे- काशी-हिती एवं भरने। सीकर के निकट ही बसे गांव कासली (लोसल रोड पर नेतड़वास ग्राम के पास) जिला सीकर राजस्थान प्रान्त में काशी कबीले के अवशेष और पुराना शिव मन्दिर देखा जा सकता है। जाटों का कासनियां, काशीवत, कासिनवाल और कृष्णीयां आदि गोत्र उच्चारण नये प्रचनल में स्थानीय भाषा के प्रवाह में बोला जाता है, लेकिन यह सब काशी कबीला ही है। कृष्णीयां गोत्र के जाट यद्यपि अपना संबंध कृष्ण जी महाराज से जोड़ते हैं। लेकिन अगर इतिहास व साक्ष्य पर नजर दौड़ाए तो हमें पता चलता है कि उनका अस्तित्व 10 हजार वर्ष पूर्व का पता चलता है। ये महाभारत से तथा श्री कृष्ण जी से पहले आर्य क्षत्रिय वर्ण के लोग हैं। महाभारत काल में उनका सम्पर्क श्री $कृष्ण से रहा होगा वे अनके ज्ञाति संघ के सदस्य रहे होंगे। इन्हें कुछ विद्वान, करसण्या जाट भी कहते हैं। जिनका संबंध खिरसणिया नामक एक जंगली वनस्पति और कृषण -कर्षण अर्थात खेती का कार्य करने वाले दोनों से जुड़ जाता है । परन्तु वास्तविक स्थिति काशी कबीला परिवार के वंशज होने से जुड़ी है और वही सत्य प्रतीत होती है। जबकि एक जाट इतिहास लेखक की माने तो – कश्यप ऋषि की सन्तान कश्यप कहलाए। काशीवत लोगों की राजधानी काशी में थी जो काशी छोड़कर चले आए वे काशीवत गोत्र से प्रसिद्ध हुए। काश्य वे कहलाए जो सूर्यवंशी समुदाय से थे। ये काशी में राज्य करते थे। जब मगधों द्वारा जीत लिये गये तो काशी छोड़ आगे बढ़ आए और काश्य काशीवत कहलाए। बह्मा के पुत्र मरीचि से कश्यप का जन्म हुआ था। कश्यप ऋषि से ही सूर्यवंश की प्रसिद्धि बताई जाती है। असल में सूर्यवंश का प्रचलन तो कश्यप पुत्र विस्वत से हुआ था। पुराणों ने तो कैस्पियन सागर को कश्यप ऋषि का आश्रम बताया है। कुछ इतिहासकारों ने भी नगर से तीन मील दूर हरि पर्वत पर कश्यप ऋषि का आश्रम लिखा है।
कासनियां गोत्र- इस गोत्र के लोग राजस्थान क्षेत्रों में अधिक संख्या में मिलते हैं। चौधरी गणपत सिंह कासनियां पुत्र श्री झाजूराम गांव अकावा जिला सीकर। हरियाणा में बालसमन्द गांव , हरिराम कासनिया, बृजलाल कासनियां, रामप्रताप कासनियां आदि गणमान्य व्यक्ति रहें है।
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कश्यप गोत्र- सन 1991 की अखिल भारतवर्षीय जाट महासभा की पुर्नगठित कार्यकारिणी में डॉ सुशीला सिंह कश्यप का नाम इस गोत्र के प्रमुखों में उल्लेखनीय हैं।
कृष्णीयां गोत्र – उमेदसिंह कृष्णीया, मोहन लाल कृष्णीयां , वीरेन्द्र कृष्णीयां, भगवान सिंह कृष्णीयां, हरीश कृष्णीया, नौरंगराम कृष्णीया आदि गणमान्य लोग हुए है।