जानिये ग्रीष्म ऋतु का महत्व और लक्षण
ग्रीष्म ऋतु के लक्षण
सर्दी और गर्मी को मिलाने वाली तथा गर्मी का प्रारंभ करने वाली वसंत ऋतु के समाप्त हो जाने पर जिन महीनों में गर्मी अपने पूरे रूप में पड़ने लगती है उस ऋतु का नाम ग्रीष्म ऋतु है। साधारण ज्येष्ठ तथा आषाढ़ के महीने ग्रीष्म ऋतु के महीने कहलाते हैं। आषाढ़ में कुछ वर्षा का भी प्रारंभ हो जाता है इसलिए कई वैशाख और ज्येष्ठ मास को ग्रीष्म ऋतु के महीने कहते हैं।
ग्रीष्म ऋतु की महिमा
इन दिनों सूर्य अपनी पूरी शक्ति से संसार को तपाता है। सूर्य का ताप, प्रकाश और प्राण ग्रीष्म ऋतु में अधिक से अधिक प्राप्त होता है। इसलिए सूर्य से मिलने वाली इन अमूल्य वस्तुओं का हमें इस ऋतु में अधिक से अधिक उपयोग करना चाहिए। सूर्य रश्मियों के सहारे से अपने मलों और विकारों को निकालकर निर्मलता और पवित्रता प्राप्त करनी चाहिए। यह काल आदान काल कहलाता है। साधारणतः समझा जा सकता है कि इस समय हमारा बल शक्ति अादि क्षीण हो जाते हैं। परंतु यदि हम इस ऋतु का ठीक उपयोग करें तो इस द्वारा हमारा कोई भी वास्तविक बल क्षीण नहीं होगा, किंतु आदित्यदेव की पवित्रता शोधक किरणों के उपयोग से केवल हमारे मल, दोष और विकार ही क्षीण होंगे। सूर्य भगवान् हमारे शरीरों में से केवल मलों और दोषों का ही आदान करके हमें पवित्र करेंगे।
ग्रीष्म ऋतु के गुण
यह ऋतु रूक्ष, पदार्थों में तिक्ष्णता उत्पन्न करनेवाली, पित्तकारक तथा कफनाशक है। इसमें वात संचित होता है। इस ऋतु में मनुष्यों की जठराग्नि तथा बल क्षीण अवस्था में होते हैं। इस ऋतु में शरीर से पसीना आदि निकल करके शरीर की शुद्धि होती है।
वसंत ऋतु में बढ़ा हुआ कफ इस ऋतु में शांत हो जाता है। अतः इस ऋतु में स्निग्ध, शीतवीर्य, मधुर तथा सुगमता से हजम होने वाले हल्के पदार्थों का सेवन करना चाहिए। अर्थात् गेहूं, मूंग,जौ, दलिया, सत्तू, लाप्सी, श्रीखंड, दूध, सरदाई, रसीले फल आदि भोजनों का सेवन करना चाहिए। इसके विरुद्ध जो अार्द्रक मिर्च आदि कटु भोजन, क्षार, लवण तथा खट्टे भोजन उष्ण वीर्य होते हैं उन्हें न्यून से न्यून मात्रा में ही उपयोग में लाना चाहिए।
इस ऋतु में शरीर और वनस्पतियों में रूक्षता और लघुता अधिक बढ़ जाने से वात बढ़ने लगता है पर काल के उष्ण होने से बहुत अधिक बढ़़कर प्रकुपित नहीं होने पाता। यह आगे वर्षा ऋतु में जाकर प्रकुपित होता है। अतः इस ऋतु में अधिक वातकारक भोजन खाना तथा गर्मी से तंग आकर बहुत शीतल पदार्थों का सेवन और शीत उपचार करना भी ठीक नहीं है। इससे बात संचित होता है जो कि वर्षा में वात-व्याधियों को उत्पन्न करेगा।
दिन में सोना यदि किसी ऋतु में लाभकर हो सकता है तो वह ग्रीष्म ऋतु है।
इस ऋतु में गर्मी की अत्यधिकता से नक्सीर फूटना, लू लगना आदि रोगों के हो जाने की संभावना रहती है। अतः रक्तपित्त व पित्त- प्रकृति वाले पुरुषों को विशेष सावधानी रखनी चाहिए। धूप और गर्मी से अपने को बचाना चाहिए। यदि बाहर जाना हो तो सिर और पैरों को ढक कर जाना चाहिए। इस ऋतु में परिश्रम की व्यायाम नहीं करनी चाहिए। प्रत्युत हल्की व्यायाम या तैरना आदि करना ठीक होता है।
हिंदी कहावत के अनुसार ‘‘ज्येष्ठ में सफर करना तथा आषाढ़ में बेल खाना निषेध है।”
ज्येष्ठ मास के लिए प्राणदायक व्यायाम
कंधों, भुजाओं और फेफड़ों में स्वस्थता तथा नीरोगता लानेवाला
१. सामान्य अवस्था में खड़े हो जाइए। भुजाएं फैला लीजिए। हथेलियां ऊपर की तरफ हों। मुट्ठी बांधने के बाद मांसपेशियों को तान लीजिए। अब हाथों को कोहनी पर से मोड़ते हुए सिर की तरफ धीमे-धीमे लाइए जिससे की उंगलियों से जोड़ कंधों को छू जाये। दोनों हाथों को फिर धीमे-धीमे वापस ले आइये। ध्यान रखिए कि इस बीच में सारे शरीर की मांसपेशियां तनी रहे। जब हाथ कंधे की तरफ ले जा रहे हो तो पूर्ण श्वास अंदर भरिये और हाथों को वापस सीधा करते समय श्वास को धीमे-धीमे बाहर निकालिये। अब शरीर को ढीला छोड़ दीजिए और इस तरह व्यायाम को कई बार कीजिए।
२. इस मास के लिए व्यायाम का दूसरा प्रकार निम्न प्रकार से है –
पूर्व निर्दिष्ट विधि के अनुसार खड़े हो जाइये। दोनों हाथ नीचे की तरफ सीधे लटके हों। मांसपेशियों को ताने लीजिये। अब दाहिना हाथ कोहनी से मोड़ते हुए ऊपर की तरफ ले जाइये। जब कोहनी कंधे के साथ सम-रेखा में आजाये तब ठहरिये। फिर हाथों को पूर्व स्थिति में वापस ले आइये। इस शरीर की मांसपेशियां तनी रहनी चाहिएं। इसके बाद यही व्यायाम बाएं हाथ से कीजिये। ऊपर की ओर हाथों को गति देते समय श्वास को अंदर भरिये ताकि जब हाथ कंधे तक पहुंच जायें तब फेफड़े श्वास से पूरे भर चुके हों। हाथों को वापस नीचे की ओर लाते समय श्वास को धीमे-धीमे बाहर निकालिये। अब शरीर को बिल्कुल ढीला छोड़ दीजिये और इस व्यायाम को कई बार कीजिये।
इस व्यायाम में अपना मन कंधों, भुजाओं, फेफड़ों पर एकाग्र कीजिये और उन्हें पूर्ण स्वस्थ रूप में अपने सामने चित्रित कीजिये।
ध्यान – इस व्यायाम से मेरे फेफड़ों की श्वासधारिणी शक्ति बढ़ रही है। मेरे फेफड़े दिनों दिन मजबूत हो रहे हैं। इस व्यायाम से मैं स्वस्थ हो रहा हूं और वास्तविक लाभ प्राप्त कर रहा हूं।