लाम्बा जाट गोत्र Jat Lamba gotra
लाम्बा जाट गोत्र जाटों का एक महत्वपूर्ण गोत्र के रूप में गिना जाता है। अलग अलग स्थानों पर इन्हें अलग अलग नामों से जाना जाता है। जैसे लांबा, लामवंशी, लाम्बा, लम्बा, लावा, लांवा, लाम्वा, लम्पक आदि। लेकिन आधार स्तर पर ये सभी एक ही है। लाम्बा गोत्र के लोग राजस्थान, पंजाब, मध्या प्रदेश व हरियाणा में ज्यादातर पाए जाते है। लाम्बा गोत्र को शुरू शुरू में लव बोला जाता था। जिससे पता चलता है कि यह राजा लव से शुरू हुआ। इतिहास में लव राजा की पहचान मर्यादा पुरूषोत्तम रामचन्द्र के ज्येष्ठपुत्र लव से हुई है। वायु पुराण में इस संबंध में साक्ष्य प्राप्त हुए है। जिसमें इनकी राजधानी श्रावस्ती को बताया गया है। इन्हीं राजा लव के द्वारा लवपुर जिसे आज हम लाहौर के नाम से जानते है की स्थापना कि थी इसी के साथ एक और जनपद की स्थापना की गई थी जिसका नाम था लम्पाक। हमारी जानकारी के अनुसार इसी सूर्यवंशी वंश के राजा वृहदबल को द्रोणपर्व के अनुसार महाभारत युद्ध में अभिमन्यु ने मारा था। इसी लाम्बा गोत्र से संबंध रखता है खत्री गोत्र। इतिहास से पता चलता है कि लाम्बा गोत्र वंश का एक समूह व्यापार करने में लग गया। जिसके बाद व्यापार में महारत हासिल करने के बाद ये लोग पंजाब के व्यवसायी दल में खत्री नाम से सम्मिलत हो गए।
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अगर हम लाम्बावंशी जाटों की संख्या पर ध्यान दे तो पता चलता है कि बीकानेर, के आस पास और कुछ गांव जयपुर में पाए जाते है। इसके अलावा भी लाम्बावंशी जाटों के गांव मुजफ्फरनगर में कबीर का नंगला, बिजनौर में बिसाठ, रतनपुर, हीमपुर, बाभडपुर, शेरकोट, बदायूं में बंगला, अगौल, सूनियांखेडा, और हिसार में दौलतपुर, राजस्थान में चिडावा के निकट गोठडा, रोहतक जिला में धारोली, जिला भिवानी तहसील बवानीखेडा में अलखपुरा और जिला महेन्द्रगढ में बारडा या फिर कहें डालनवास गांव का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। पलवल के पास अमरपुर गांव भी लाम्बा जाटों का है। दिल्ली में अगर देखा जाए तो गांव कुतुबगढ में भी लाम्बा जाट काफी संख्या में हमें मिलते हैं।
लाम्बा गोत्र में एक प्रसिद्ध जाट हुए है सूबेदार रिछपालराम जी इन्हें विक्टोरिया क्रास से सम्मानित किया गया है। जानकारी के अनुसार सूबेदार रिछपालराम का जन्म 26 अगस्त 1899 ई को हरियाणा के महेन्द्रगढ जिले में हुआ था। बडे होकर सूबेदार रिछपालराम ने ब्रिटिश सेना की राजपूताना राईफल पलटन में भरती हुए। लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध के समय ब्रिटिश सेना की और से इन्हें लीबिया भेज दिया गया। लीबिया में तोब्रुक क्षेत्र के केरेन मोर्चे पर जर्मन शत्रु सेना का भारी जमाव था। इनकी कम्पनी को केरेन के मोर्चे पर आक्रमण करने का आदेश दिया गया। सूबेदार रिछपालराम ने अपनी कम्पनी के साथ 7 फरवरी की रात शत्रु पर आक्रमण कर दिया। ये सबसे आगे वाली प्लाटून के साथ चल रहे थे। सामने से भारी गोलीबारी हो रही थी लेकिन किसी की प्रवार ना करते हुए अपने प्लाटून सहित शत्रु के मोर्चे पर हमला कर दिया और जल्द ही संगीन की लडाई जीत कर मोर्चे पर अपना परचम लहराया। दूसरी कम्पनियों ने भी अलग अलग हमलों में शत्रु के किए दूसरे धावों को असफल कर दिया। लेकिन सुबेदान रिछपाराम व उनके जवानों की गोलियां समाप्त हो चुकीं थीं और शत्रु ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया। सभी सिपाही हार मान चुके थे लेकिन सुबेदार ने हार नहीं मानी और अपने सिपाहियों का हौसला बढाते हुए शत्रु पर टूट पडे। उनके अचानक बिना हथियार के हमले से शत्रु घबरा गए जिसका फायदा उठाकर ये शत्रु का घेरा तोड कर अपने दूसरे कम्पनी के सिपाहियों से जाकर मिल गए। अपनी समझदारी से इन्होंने अपने सिपाहियों की जान बचाई। सुबेदार को 12 फरवरी 1941 को फिर से कम्पनी सहित शत्रु पर हमला करने का आदेश मिला जिसके बाद सुबेदार ने अपनी कम्पनी के साथ शत्रु के मोर्चे पर हमला कद दिया। शत्रु की तरफ से भारी गोलाबारूद हो रहा था। इन्होंने कम्पनी के सैनिकों को उत्साहित करते हुए निडरता से आगे बढ गए। जब सुबेदार शत्रु के पास पहुंचे तो उनका दाहिना पग उड गया। इसके अलावा भी उन्हें कई गोलियां लगी। जिसके बाद अंत में वे वीरगति को प्राप्त हो गए। उनके आखिरी शब्द थे कि हम शत्रु का मोर्चा अवश्य लेंगे।
इस प्रचण्ड वीरता के लिए ब्रिटिश सरकार की ओर से वायसराज लार्ड लिंलिथगो ने अपने हाथों से स्वगर्गीय सूबेदार रिछपालराम की धर्मपत्नी श्रीमती जानकीबाई को वीरता का सर्वोच्च पदक विक्टोरिया क्रास प्रदान किया। उस समय बारडा गांव पटियाला रियासत में था।