अजेय और मजबूत लोहागढ का किला
हम लेकर आ रहे है आपके लिए ऐसे ऐतिहासिक जाट प्रतीकों के बारे में जानकारी जिन्हें जानने के बाद आपको अपने समाज पर गर्व महसूस होगा। इतिहास में हजारों लाखों युद्ध हुए। इन युद्धों में हजारों किले जीते गए लेकिन इतिहास में एक किला ऐसा भी है जिसे आज तक कोई जीत नहीं पाया है। इस किले का नाम है लोहागढ का किला। राजस्थान में भरतपुर शहर से 2 किलोमीटर दूर लोहागढ का किला सन 1730 में महाराजा सूरजमल ने बनवाया था।
भरतपुर में सबसे आकर्षण का केन्द्र लोहागढ
का किला है। जानकारी के अनुसार इसे बनाने में लगभग 60 वर्ष का समय लगा था। सन 1805 में लॉर्ड लेक की अगवाई में ब्रिटिश सेना ने इस किले को जीतने के लिए बार बार हमला किया लेकिन ब्रिटिश सेना कामयाब ना हो सकी। सेना ने 1805 ईस्वी में 9 और 21 जनवरी को किले पर हमला किया। उसके बाद 20 और 21 फरवरी को भी किले पर हमला किया लेकिन हर हमला लोहागढ किले की मजबूती के आगे टिक ना सका। सेना ने 6 हफ्तों तक किले की घेराबंदी की लेकिन ब्रिटिश किसी भी प्र्रकार से किले को भेद ना सके। जिसके कारण ब्रिटिश सेना को थक कर वापस जाना पडा। इस युद्ध में लगभग 3203 अधिकारी और पुरूष मारे गए थे।
लोहागढ किले की वास्तुकला
लोहागढ किले की अगर वास्तुकला के बारे में बात की जाए तो पता चलता है कि इसकी बाहरी दिवारी मिट्टी की बनी हुई है। जिसके कारण किसी भी गोलीबारी या बारूद का इस पर असर नहीं होता क्योंकि यह सभी को अपने में समाहित कर लेती है। किले की दिवारे करीब सात किलोमीटर तक लंबी है। इन दिवारों को बनाने में ही मजदूरों को लगभग आठ साल का समय लग गया था।
किले के अंदर दो गेट बने हुए है। उत्तर वाले गेट को अष्टधातु के नाम से लोग जानते है। गेट पर युद्ध के समय हाथी के गोल गढों और चित्रों को खूबसूरती के साथ उकेरा गया है। जानकारी के अनुसार इस द्वार से एक कहानी भी जुडी हुई है जिसके अनुसार यह द्वार प्रारंभ में चित्तौडगढ किले का द्वार था जो राजस्थान का एक प्रमुख किला है। जब १३ वीं शताब्दी के अंत में सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने राजपूत शहर को लूटा तो वो इस गेट को दिल्ली ले गया था। जाटों ने 1764 में दिल्ली पर हमला किया तो इस गेट को दिल्ली से निकाल लिया गया और इसको भरतपुर लेकर आये। किले का दूसरा द्वार दक्षिण दिशा में स्थित है जिसे चौबर्जा या चार स्तंभ वाला द्वार के नाम से सभी जानते है।
किले में महलों का निर्माण
लोहागढ किले में तीन महलों का निर्माण किया गया है जिसमें महल खास, कामरा महल और बदन सिंह का महल नाम दिया गया है। महल खास का निर्माण सूरजमल द्वारा करवाया गया था जो 1730 और 1850 के दौरान किले में जाटों द्वारा बनाये गए तीन महलों में से एक था। जबकि किले में जवाहर बुर्ज और फतेह बुर्ज नाम के टावर भी मौजूद है । इनका निर्माण मुगलों और ब्रिटिश सेना पर जाटों की विजय के प्रतीक के रूप में बनाया गया है।
कामरा पैलेस किले की एक खास जगह के रूप में जानी जाती है। जानकारी के अनुसार इसका इस्तेमाल कवज और खजाने को संग्रहीत करने के लिए किया जाता था। लेकिन वर्तमान समय में सरकारी संग्रहालय के रूप में जाना जाता है । आज यहां जैन मूर्तियां , एक यक्ष की
नक्काशी, हथियारों का संग्रह और कई पांडुलिपियां मौजूद है। ये पांडुलिपियां अरबी और संस्कृति भाषा में लिखी गई है। प्लेस को खूबसूरत बनाने के लिए छोटे कक्ष और अलंकृत पत्थर की खिडकियों का निर्माण किया गया है जिसमें सुंदर पैटर्न के संगमरमर के फर्श हैं। जबकि संग्रहालय में एक प्रदर्शनी भगवान शिव की नटराज और लाल बलुआ पत्थर शिवलिंग के रूप में भी विराजमान है।
भरतपुर के इस ऐतिहासिक किला में रक्षा करने वाले 8 भाग हैं और अनेक बुर्ज भी। किले के अंदर महत्वपूर्ण स्थान हैं- किशोरी महल, महल खास, मोती महल और कोठी खास। इसमें कई प्रसिद्ध मंदिर है, जिसमें गंगा मंदिर, लक्ष्मण मंदिर तथा बिहारीजी का मंदिर अत्यंत लोकप्रिय है। इसके बीच में एक बड़ी जामा मस्जिद भी है। ये मंदिर और मस्जिद पूर्ण रूप से लाल पत्थर के बने हैं। इन मंदिरों और मस्जिद के बारे में एक अजीब कहानी प्रचलित है। लोगों का मानना है कि भरतपुर रियासत में जब महाराजा किसी व्यक्ति को नौकरी पर रखते थे तो उस व्यक्ति के साथ यह शर्त रखी जाती थी कि हर महीने उसकी तनख्वाह में से 1 पैसा धर्म के खाते काट लिया जाएगा। हर नौकर को यह शर्त मंजूर थी। अगर नौकर हिन्दू है तो उसका पैसा हिन्दू धार्मिक खाते में जमा कर दिया जाता था लेकिन अगर नौकर मुस्लिम है तो उसका पैसा अलग मुस्लिम धर्म खाते में जमा कर दिया जाता था। इन पैसों का उपयोग उन्हीं लोगों के धर्म से संबंधित विकास या निर्माण के लिए किया जाता था।
लोहागढ किले में जाने का सबसे अच्छा समय अगस्त व सितंबर में माना जाता है क्योंकि इस समय मौसम सुहावना होता है और ना गर्मी होती है ना सर्दी। वरना गर्मी और सर्दी में आप मौसम की मार से परेशान रहेगे और किला इतना बडा है कि आप थोडे ही समय में थक कर चूर हो जाएगे।
अगर लोहागढ किले के खुलने की बात करें तो यह किला सुबह 9 बजे खुलता है जबकि शाम को 5.30 बजे बंद होता है। लोहागढ किले में जाने के लिए आपको किसी प्रकार का शुल्क नहीं देना होता है। यह बिल्कुल मुफ्त है।
आगर आप लोहागढ किले जाने की सोच रहे है तो आपको बता दें कि आप यहां फ्लाइट, सड़क या फिर रेल किसी भी माध्यम से पहुंच सकते हो। यह दिल्ली से 200 किलोमीटर, आगरा से 60 किलोमीटर और जयपुर से 180 किलोमीटर दूर पडता है। जबकि हवाई जहां से पास का हवाई अडडा जयपुर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अडडा लगभग 180 किलोमीटर और आगरा शहर का हवाई अडडा लगभग 60 किलोमीटर दूर पडता है । अगर आप ट्रेन से यहां आने की सोच रहे हो तो यह दिल्ली आगरा और दिल्ली – मुंबई ट्रेन मार्ग पर पडता है । भरतपुर यहां का मुख्य रेलवे स्टेशन है जहां से आप आराम से लोहागढ के किले का सफर तय कर सकते है।